Thursday, April 11, 2019

अधिवक्ता एवं आरटीआई एक्टिविस्ट सज्जनसिंह भाटी

अधिवक्ता एवं आरटीआई एक्टिविस्ट सज्जनसिंह भाटी को व 2 अन्य लोगों को दिनांक 08.04.2019 को रात 11:10 बजे पुलिस थाना कोतवाली, जिला बाड़मेर मे दर्ज की गई FIR संख्या 134/2019 मे पुलिस थाना कोतवाली के SHO जब्बरसिंह चारण व जांच अधिकारी रावताराम पोटलिया ने अगले दिन सुबह 09.04.2019 कि सुबह 9:00 बजे सज्जनसिंह को उनके घर से उठा लिया। पुलिस का इरादा था की वह उन्हें कुछ दिन तक गैर हिरासत में रखकर प्रताड़ित करेगी लेकिन पुलिस का सज्जन सिंह को गैर हिरासत में रखने के सपने को पूरा नहीं होने दिया तथा उनकी धर्मपत्नी को मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश करने पर मजिस्ट्रेट द्वारा रिपोर्ट मांगने व मामला SP बाड़मेर के ध्यान मे लाने पर पुलिस ने उन्हें हिरासत में ले लिया।
अगले दिन दिनांक 10.04.2019 को सुबह 11:00 बजे ACJM कोर्ट बाड़मेर में सभी को पेश किया और पुलिस ने कहा कि इनसे कुछ बरामदगी बाकी है इसलिए 2 दिन का पुलिस रिमांड दिया जाए। जिस पर सज्जनसिंह ने इसका विरोध किया और कहा कि क्या बरामद करना चाहते है बताइए ? जिस पर इन्वेस्टिगेशन ऑफीसर ने कहा कि उन्हे मोबाइल बरामद करना है। जिस पर सज्जनसिंह ने कहा कि वह मोबाइल अभी मंगवा कर कोर्ट में ही अपको सुपुर्द कर देते हैं इसलिए पुलिस रिमांड की जरूरत नहीं है।
जिस पर मजिस्ट्रेट ने कहा ठीक है मोबाइल दे दो... और उन्होंने मोबाइल पुलिस को सुपुर्द करवा दिया।
फिर भी पुलिस ने पीसी मांगी तो मजिस्ट्रेट ने कहा कि शाम को 4:00 बजे तक की पीसी ले जाओ और दोपहर 4:00 बजे पेश करो।
पुलिस ने इन्हे 4:00 बजे न्यायालय में पेश किया लेकिन मजिस्ट्रेट महोदय ने बिना पक्ष सुनें, कोर्ट में बैठे बगैर अपने ही अपने चेंबर में बैठकर आईओ को अपने चेंबर में बुलवाया, हमारे सामने आईओ उनके चेंबर में गया और 2 दिन का पीसी दे दिया।
इससे ऐसा प्रतीत होता है कि कहीं ना कहीं मजिस्ट्रेटो का और पुलिस अधिकारियों का नेक्सस हैं। ऐसा प्रतीत होता है जैसे कि मजिस्ट्रेटों का घर पुलिस वाले चलाते हैं इसके बदले में पुलिस वाले जो चाहे वह उनसे प्राप्त कर सकते हैं। न्यायपालिका की यह दुर्दशा बहुत ही भयानक परिणामदायक है।
अभी सज्जनसिंह और उनके साथ पुलिस द्वारा गिरफ्तार किए गए व्यक्ति पुलिस रिमांड पर चल रहे हैं।
सोचने वाली बात है कि पुलिस दिनांक 08.04.2019 की रात 11:10 से 09.04.2019 की सुबह 9:00 बजे तक 9-10 घंटे में कैसे इस नतीजे पर पहुंच गई थी कि सज्जनसिंह दोषी है ? ऐसा लगता है कि बाड़मेर जिले की पुलिस सीबीआई से भी तेज गति से जांच करती हैं और वह आधी रात को जांच प्रारंभ करती है और सुबह होने तक जांच कंप्लीट कर आरोपियों को गिरफ्तार भी कर लेती हैं, जबकि सामान्यतः देखा जाता है कि पुलिस कई दिनों तक एफआईआर भी दर्ज नहीं करती और मुलजिम को पकड़ने की तो बात ही कुछ अलग है महीनों, वर्षों तक दोषियों को नहीं पकड़ती और यहां जब बात आरटीआई एक्टिविस्ट की आती है तो पुलिस पूरी तरह से सक्रिय और मुस्तैद नजर आती है। हमें पुलिस की सक्रियता और मुस्तैदी से कोई समस्या नहीं है लेकिन यह सक्रियता और मुस्तैदी सभी मामलों में ऐसी हो तो वह न्यायप्रिय लगती है अन्यथा पक्षपाती साफ नजर आती है।
सामान्यतः यह देखा जाता है कि जब किसी आरटीआई एक्टिविस्ट के खिलाफ कोई मामला दर्ज होता है तो पुलिस बहुत सक्रिय होती है वही आरटीआई कार्यकर्ता द्वारा किसी अन्य के खिलाफ मुकदमा दर्ज करवाया जाता है तो ऐसा लगता है कि पुलिस मृत प्राय: अवस्था में चल रही है। और वह कम स्टाफ, ज्यादा काम और अपनी व्यस्तता के ऐसे ऐसे बेमिसाल उदाहरण और अकाट्य तर्क बताते हैं कि उनके सामने सीनियर से सीनियर अधिवक्ता के तर्क भी कमतर लगते हैं।
माना कि कोई व्यक्ति RTI कार्यकर्ता है लेकिन RTI कोई क्राइम तो नहीं है। किसी व्यक्ति के विरुद्ध कोई RTI लगाई या शिकायत की जिसके कारण उसने सुसाइड कर लिया, तो क्या आरटीआई लगाने वाले व्यक्ति को या शिकायतकर्ता को दोषी मान लेंगे? वह भी मात्र 9-10 घण्टे में?
मैं मृतक की आत्मा की शांति की प्रार्थना करता हूं तथा उनके परिजनों के साथ मेरी सहानुभूति हैं। लेकिन सोचने वाली बात है कि क्या मरने से किसी समस्या का समाधान होता है। अगर उन्हें किसी ने परेशान किया है और वह अपनी जगह सही है तो दोषियों के विरुद्ध विधिवत कार्यवाही की जा सकती है।
यह भी सभी जानते हैं कि सज्जनसिंह ने कुछ समय पहले माननीय राजस्थान उच्च न्यायालय से संपूर्ण राजस्थान मे कोऑपरेटिव सोसायटीयों को बैंकों की तरह लेनदेन करने पर रोक लगवा दी थी और सबकी दुकानें बंद करवा दी थी तो फिर वह व्यक्ति किस प्रकार सोसायटी का संचालन कर रहा था।
अखबार में स्पष्ट लिखा है कि मृतक के कमरे में कोई सुसाइड नोट नहीं मिला जबकि पुलिस अब कह रही है कि सुसाइड नोट मिला है।
कोई कैसे मरा, इसकी जांच होना आवश्यक है, जो दोषी हैं उसे बख्शा नही जाना चाहिए, लेकिन पहले यह तो तय किया जाना चाहिए की वास्तव मे हुआ क्या है, वाकई कौन दोषी हैं ? या उसे सिर्फ आरटीआई एक्टिविस्ट और शिकायतकर्ता होने के नाम पर फसाया तो नहीं जा रहा है ?
मैं तो पुलिस से एक ही बात कहता हूं कि सही जांच करना... वरना कहीं ऐसा नहीं हो कि किसी को फंसाने के चक्कर में और किसी को खुश करने के चक्कर में यह कृत्य खुद की नौकरी पर भारी पड़ जाए। फिर कोई नहीं आता बचाव में। यह मैंने महसूस किया है कि पहले तो पुलिस किसी के दबाव में और कहने में आकर मनमर्जी वाला काम कर लेती है और जब खुद पर बन आती है तो जिनके कहने से काम किया होता है वह सब किनारे हो जाते हैं और वह पुलिस अधिकारी मारा मारा मुंह लटकाए हुए हाथाजोड़ी करता हुआ कोर्ट में फिरता रहता है। ऐसे मामलों में पूरी तरह कानूनन सभी पहलुओं की जांच पड़ताल होती हैं अगर सामान्य भाषा में कहा जाए तो बाल की खाल उतरती है। जो चीजें पुलिस वालों ने अपने जीवनकाल में कभी ना तो सीखी है, ना सुनी है, ना पढी है... वह सभी चीजें ऐसे मुकदमों में सामने आती है, उच्च स्तरीय जांच होती है और पुलिस तो गलतियों का पुतला होती है और इसके परिणाम काफी गंभीर होते हैं और भुगतने में भी होंगे...

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