Wednesday, March 29, 2017

जेतल कंस्ट्रक्शन ग्वालियर की ग्राहक से बंधुओं धोखाधड़ी

जेतल कंस्ट्रक्शन के मालिक वीरेंद्र कुमार गुप्ता द्वारा ग्राहक प्रभात शर्मा व कई अन्यो के साथ कि गई धोखाधड़ी ।

ग्राहक बंधुओं से आग्रह है कि जेतल कंस्ट्रक्शन प्राइवेट लिमिटेड से किसी भी प्रकार का व्यवहार करने से पूर्व कृपया सतर्कता बरतें ।

कारण यह है कि उपरोक्त कंस्ट्रक्शन कंपनी द्वारा मुरैना निवासी ग्राहक प्रभात शर्मा से ग्राम - रमोआ ग्वालियर में फ्लैट बना कर देने हेतु रु 14 लाख 32 हजार का अनुबंध किया गया । ग्राहक समय समय पर रुपयों का भुगतान करता रहा तथा रु 5 लाख 32 हजार भुगतान करने के पश्चात ग्राहक को ज्ञात हुआ की साइड पर कोई निर्माण कार्य चल ही नहीं रहा है और बिल्डर रुपए लेते ही जा रहा है ।

ग्राहक को धोखाधड़ी का अनुमान होने पर बिल्डर से ब्याज सहित रुपए मांगे जाने पर बिल्डर द्वारा देने से इंकार कर दिया गया । साथ ही बिल्डर द्वारा ग्राहक को धमकाकर दुर्व्यवहार भी किया गया ।

इस संबंद्ध में ग्राहक प्रभात शर्मा द्वारा ग्राहक पंचायत ग्वालियर को शिकायत दर्ज कराई गई है । ग्राहक पंचायत ग्वालियर द्वारा उपरोक्त कंस्ट्रक्शन कंपनी के डायरेक्टर वीरेंद्र कुमार गुप्ता को ब्याज सहित रुपए वापस करने हेतु पत्र लिखा गया है अन्यथा वैधानिक कार्यवाही कर ऐसे धोखेबाज बिल्डरों के विरुद्ध चरणबद्ध आंदोलन किया जाएगा ।

इसी प्रकार का अनुचित व्यवहार बिल्डर वीरेंद्र कुमार गुप्ता द्वारा ग्वालियर के कई अन्य ग्राहक बंधुओं के साथ भी किया गया है । ग्राहक बंधु इस प्रकार के फ्रॉड बिल्डर्स के विरुद्ध आवाज़ उठाएं तथा पुलिस अधीक्षक ग्वालियर को पत्र सौंपे ।
अन्य पीड़ित ग्राहक इस संबंध में ग्राहक पंचायत ग्वालियर को अवगत करा सकते हैं ।

आवास या फ्लैट खरीदने से पूर्व ग्राहक बंधु इस संबंद्ध मैं रियल स्टेट रेग्युलेटर बिल का अवश्य अध्ययन करे व धोखाधड़ी से बचे ।
ज्यादा जानकारी हेतू ग्राहक पंचायत कार्यकर्ताओं से संपर्क कर सकते है ।

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लोकेन्द्र मिश्रा
9644848617
दीपक गोड़
7828650476
आकाश सोनी
9827359100
आशा सिंह
9826248084
प्रियंका राजावत
9691579777
संजीव श्रीवास्तव
9826539135
देवीसिंह राठौर
9425194338

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Bijwasi Sweets, Malad sells 7-month old expired Pepsi 7-Up stocks to Arshi Khan

Bijwasi Sweets, Malad sells 7-month old expired Pepsi 7-Up stocks to Arshi Khan
Posted by: Editor - IndiaNewsNet.IN  in Mumbai Suburbs News March 27, 2017 0 80 Views

Well Arshi Khan has a knack for getting into trouble. But this time, it was trouble that fell into Arshi Khan’s lap.
The actress who was travelling to Andheri via the S V Road on Monday evening, asked her assistant to get her a Pepsi bottle. She stopped her car outside Brijwasi sweets at S. V. Road Malad West, opposite the Mac Donalds and Domino’s Pizza stores and asked the store keeper for a soft drink bottle.
The store keeper gave her assistant Manish Yadav a 1.25 litre Pespsi 7-Up bottle and he handed it over to her.
After taking a few sips, Arshi Khan realised something was amiss. The 7 Up tasted different and there was something fishy about the beverage. It was not the regular 7-Up taste, she said.
On checking the manufacture date on the bottle, she realized that the  bottle was over 7 months old, well over the 3-months validity or stipulated date of validity.
She turned back her car and immediately sent her assistant back with the bottle to Brijwasi Sweets. The owner accepted the bottle back and returned the cash, but refused to apologize.
Arshi Khan had decided to take the matter ahead and will file complaints with the FDA and other statutory bodies.


Representatives of Brijwasi Sweets and Pespsi were not available for comment.

योगी सरकार ने शिकायत के लिए #Whatsapp नंबर

योगी सरकार ने शिकायत के लिए #Whatsapp नंबर किया जारी, 3 घंटे के अंदर होगा ऐक्शन
#UttarPradesh #YogiAdtiyanath WhatsApp #Helpline #Complaint

गन्ने की बिजाई का नया तरीका है जिस से गन्ना 3 गुणा ज्यादा निकलता है

जमीदार भाईयो ये गन्ने की बिजाई का नया तरीका है जिस से गन्ना 3 गुणा ज्यादा निकलता है ।।

ज्यादा से ज्यादा शेयर करे ताकि गन्ने की खेती करने वाले जमीदार भाईयों तक ये पहुंच जाऐ ।।

जमीदार ।।

गन्ना लगाने की गडढा बुवाई विधि भरतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान, द्वारा विकसित की गई हैं। दरअसल गन्ना बुवाई के पश्चात प्राप्त गन्ने की फसल में मातृ गन्ने एवं कल्ले दोनों बनते है । मातृ गन्ने बुवाई के 30-35 दिनों के बाद निकलते हैं, जबकि कल्ले मातृ गन्ने निकलने के 45-60 दिनों बाद निकलते है। इस कारण मातृ गन्नों की अपेक्षा कल्ले कमजोर होते है तथा इनकी लंबाई, मोटाई और वजन भी कम होता है । उत्तर भारत में गन्ने में लगभग 33 प्रतिशत अंकुरण हो पाता है, जिससे मातृ गन्नों की संख्या लगभग 33000 हो पाती है, शेष गन्ने कल्लों से बनते है जो अपेक्षाकृत कम वजन के होते है। इसलिये यह आवश्यक है कि प्रति हैक्टेयर अधिक से अधिक मातृ गन्ने प्राप्त करने के लिए प्रति इकाई अधिक से अधिक गन्ने के टुकड़ों को बोया जाए। गोल आकार के गड्ढों में गन्ना बुवाई करने की विधि को गड्ढा बुवाई विधि कहते हैं।

इस विधि को कल्ले रहित तकनीक भी कहते हैं। इस विधि से गन्ना लगाने के लिए सबसे पहले खेत के चारों तरफ 65 सेमी. जगह छोड़े तथा लंबाई व चौड़ाई में 105 सेमी. की दूरी पर पूरे खेत में रस्सी से पंक्तियों के निशान बना लें। इन पंक्तियों के कटान बिंदु पर 75 सेमी. व्यास व 30 सेमी. गहराई वाले 8951 गड्ढे तैयार कर लें। अब संस्तुत स्वस्थ गन्ना किस्म के ऊपरी आधे भाग से दो आँख वाले टुकड़े सावधानी पूर्वक काट लें। इसके पश्चात 200 ग्राम बावस्टिन का 100 लीटर पानी में घोल बनाकर 10-15 मिनट तक डुबों कर रखें। बुवाई पूर्व प्रत्येक गड्ढे में 3 किग्रा. गोबर की खाद 8 ग्राम यूरिया, 20 ग्राम डी.ए.पी., 16 ग्राम पोटाश, और 2 ग्राम जिंक सल्फेट डालकर मिट्टी में अच्छी प्रकार मिलाते है। अब प्रत्येक गड्ढे में साइकिल के पहिये में लगे स्पोक की भांति, दो आँख वाले उपचारित गन्ने के 20 टुकड़ों को गड्ढे में विछा दें। तत्पश्चात 5 लीटर क्लोरपायरीफास 20 ईसी को 1500-1600 लीटर पानी में घोल कर प्रति हैक्टेयर की दर से गन्ने के टुकड़ों के ऊपर छिड़क दें । इसके अलावा ट्राइकोडर्मा 20 किग्रा. को 200 किग्रा. गोबर की खाद के साथ मिलाकर प्रति हैक्टेयर की दर से टुकड़ों के ऊपर डाल दें। प्रत्येक गड्ढे में सिंचाई करने के लिए गड्ढों को एक दूसरे से पतली नाली बनाकर जोड़ दें । अब गड्ढो में रखे गन्ने के टुकड़ो पर 2-3 सेमी. मिट्टी डालकर ढंक दें। यदि मिट्टी में नमी कम हो तो हल्की सिंचाई करें। खेत में उचित ओट आने पर हल्की गुड़ाई करें जिससे टुकड़ो का अंकुरण अच्छा होता हैं। चार पत्ती की अवस्था आ जाने पर (बुवाई के 50-55 दिन बाद) प्रत्येक गड्ढे में 5-7 सेमी. मिट्टी भरें और हल्की सिंचाई करें तथा ओट आने पर प्रत्येक गड्ढे में 16 ग्राम यूरिया खााद डालें। मिट्टी की नमी तथा मौसम की परिस्थितियों के अनुसार 20-25 दिनों के अन्तराल पर हल्की सिंचाई और आवश्यकतानुसार निराई-गुड़ाई भी करते रहें। जून के तीसरे सप्ताह में प्रत्येक गड्ढे में 16 ग्राम यूरिया डालें। जून के अंतिम सप्ताह तक प्रत्येक गड्ढे को मिट्टी से पूरी तरह भर दें। मानसून शुरू होने से पूर्व प्रत्येक थाल में मिट्टी चढ़ा दें। अगस्त माह के प्रथम पखवाड़े में प्रत्येक गड्ढे के गन्नों को एक साथ नीचे की सूखी पत्तियों से बांध दें। सितम्बर माह में दो पंक्तियों के आमने-सामने के गन्ने के थालों को आपस में मिलाकर (केंचीनुमा आकार में )बांधे तथा गन्ने की निचली सूखी पत्तियों को निकाल दें। अच्छी पेड़ी के लिए जमीन की सतह से कटाई करें। ऐसा करने से उपज में भी बढ़ोत्तरी होती हैं। सामान्य विधि की अपेक्षा इस विधि द्वारा डेढ से दो गुना अधिक उपज प्राप्त होती है। केवल गड्ढों में ही सिंचाई करने के कारण 30-40 प्रतिशत तक सिंचाई जल की बचत ह¨ती है। मातृ गन्नों में शर्करा की मात्रा कल्लों से बने गन्ने की अपेक्षा अधिक होती है । इस विधि से लगाये गये गन्ने से 3-4 पेड़ी फसल आसानी से ली जा सकती हैं।
क्षेत्र विशेष के अनुसार उन्नत किस्म के गन्ने का चयन और बुआई की नवीनतम वैज्ञानिक विधि के अलावा गन्ना फसल की बुआई उपयुक्त समय पर (शरद्कालीन बुआई सर्वश्रेष्ठ ) करें तथा आवश्कतानुसार उर्वरकों एवं सिचाई का प्रयोग करें और पौध सरंक्षण उपाय भी अपनाएँ। समस्त सस्य कार्य समय पर सम्पन्न करने पर गन्ने से 100 टन प्रति हेक्टेयर उपज लेकर भरपूर मुनाफा कमाने का मूलमन्त्र यही है।

By :-

डाँ.गजेन्द्र सिंह तोमर
प्रमुख वैज्ञानिक,सस्यविज्ञान विभाग,
इंदिरा गांधी कृषि विश्व विद्यालय, रायपुर

अमेरिकन केसर उगाये और लाखों कमाए फ्रॉड गर्दी का नया नाम

फ्रॉड गर्दी का नया नाम अमेरिकन केसर!
आजकल चारों तरफ अखबारों में समाचारों में टीवी पर फेसबुक व्हाट्सअप पर खबरें चलायी जा रही हैं के अमेरिकन केसर उगाये और लाखों कमाए। पत्रकार साथियों में होड़ लगी है इसके किसानों से बिना मिले ही बिना जाँच पड़ताल के मोटिवेशनल स्टोरी छापने की।
साथियों की जानकारी के लिए अमेरिकन केसर कुछ और नहीं कुसुम(safflower) है जिसे मप्र महारास्ट्र में करडी के नाम से भी जानते हैं।ये तिलहन वर्गीय फसल है और इसे खाद्य तेल के लिए उगाया जाता है।(सफोला तेल इसी का होता है)
इसी से प्राप्त पुंकेसर(फूल के अंदर वाली पंखुड़ी,ऐसी ही केसर की होती है।)को असली केसर में मिलावट करके वर्षों से बेचा जाता है।ये एक दंडनीय अपराध है(मिलावट)।
इससे प्राप्त फसल यानी बीज बाजार में 3 से साढ़े तीन हजार रुपए कु में बिकते हैं और हमारे पत्रकार साथी कुछ दलालों को प्रोमोट करने पे लगे हैं जो इसका बीज 5 रुपए प्रति या 20 हजार रुपए किलो किसानों को बेचना चाहते हैं।

दरसल इसका कारण ये है कि हमारे पत्रकार साथी आजकल ग्राउंड जीरो पर न जाकर किसानों से रिपोर्ट लिखवा कर मंगा कर छापने में विश्वास करते हैं।
पत्रकार भाइयों आपने तो नँ बढ़ाने के लिए खबर छाप दी पर जो किसान आपकी खबर पढ़ कर लुटेगा उसका नुक्सान कैसे भरोगे।
सरकारी तंत्र का गूंगा पन तो जग जाहिर है पर आपका आलस किसानों को गर्त में डाल सकता है।

आप सब से निवेदन ही किया जा सकता है के फील्ड में जाकर इसकी वस्तुस्थिति पता करें पुनः खबर छापे। किसानों को भृमित होने से बचाये।

किसान भाई इस गोरखधंधे से बचें
ज्यादा जानकारी के लिए 09634865111 पर फोन करे साथी।





विषय : परीक्षाओ मे नकल मे नकेल न लगने के संबंध मे महोदय ,

श्री आदित्य योगी जी ,
माननीय मुख्य मंत्री , उत्तरप्रदेश शासन ,
लखनऊ
विषय : परीक्षाओ मे नकल मे नकेल न लगने के संबंध मे
महोदय ,

माना कि उत्तरप्रदेश मे नकल का ठेका पूर्ववर्ती अखिलेश सरकार के कार्यकाल मे विगत अनेक वर्षो कि भाँति ही उठाया गया था , परंतु नकल ठेकेदारो का दुर्भाग्य कि प्रदेश मे भारतीय जनता पार्टी की सरकार आपके नेतृत्त्व मे सत्तारूढ़ हो गई , परंतु हमारी आशाओ के विपरीत नकल अभी भी नहीं रुक पा रही ( अलीगढ़ से प्रकाशित विभिन्न समाचार पत्रो कि 7 कटिंग संलग्न ) । यह भी सच है कि इस ठेके मे पूर्ववर्ती सत्तानसीन पार्टी के अनेकों प्रभावी राजनेताओ के अतिरिक्त शिक्षा विभाग मे तैनात अनेकों अधिकारिओ की मूक सहमति लगता है अब भी जारी है । अलीगढ़ जिले का आम भाषा मे बोले जाने वाला अतरौलीया बोर्ड प्रदेश मे ही नहीं वरन प्रदेश के बाहर भी मशहूर है । यह अतरौली एक जाति विशेष का बाहुल्य क्षेत्र है , सरकार बदलने के बाद अब तो और भी अधिक ताल ठोक कर वहाँ के बाहुबली अधिकारियों को धमका रहे है कि अब तों हम ज्यादा मजबूत हो गए है ।

मान्यवर हमारा सरोकार 2 बिन्दुओ को लेकर है –
1. ऐसे होनहार विद्यार्थी जो अपने परिश्रम एवम विवेक से परीक्षा दे रहे है , सर्टिफिकेट प्राप्त करने के बाद मे जब अन्यत्र उच्च शिक्षा अथवा नौकरी हेतु जाएंगे तो उनको भी नकलची मानकर उनसे हेय दृष्टि से व्यवहार किया जाएगा ।
2. आप जैसे संत के कार्यकाल मे अगर यह गंदगी जारी रहती है तो इसके छींटे आप की सरकार पर भी आएंगे ही , जिससे हमे बहुत ही निराशा और वेदना होगी ।

अतः हमारा अनुरोध है कि प्रदेश की छवि सुधारने हेतु ऐसे त्वरित एवम कठोर कदम उठाए जाय जिससे नकल माफियाओ मे दशहत और जनता मे सकारात्मक संदेश जाये ।

भवदीय

ई विक्रम सिंह , अध्यक्ष , ट्रेप ग्रुप

संलग्न :
हिंदुस्तान , अलीगढ़ की कटिंग दिनांक 18 मार्च , 20 मार्च 2017
दैनिक जागरण , अलीगढ़ , 19 मार्च , 20 मार्च , 21 मार्च , 24 मार्च 2017
अमर उजाला अलीगढ़ , 24 मार्च 2017
दिनांक: 28/03/2017 (जीवनदीप)

जागो पेरंटस जागो

प्राइवेट स्कूलों के खिलाफ इस बच्ची का संघर्ष काबिले तारीफ है । जैसे इस बच्ची ने पहले लगातार कई महीनों तक डीसी दफ्तर जालंधर के आगे धरना लगाया था और अपने मकसद के लिए डटी रही । उसी तरह यह जागरुक बच्ची अब एक बार फिर आप सभी के हकों के लिए तथा शिक्षा को इन भ्रष्ट प्राइवेट स्कूल माफिया से आजाद करवाने के लिए संघर्ष छेड़ रही है ।
इस संघर्ष पहली कड़ी के तहत इस बच्ची ने जालंधर छावनी के विधायक परगट सिंह से मुलाकात की और उन्हें कहा कि आप प्राइवेट स्कूलों द्वारा लूट की जा रही का मुद्दा इस विधान सभा सेशन में उठाए , तो प्रगट सिंह जी ने इन्हें बोला के अभी पंजाब विधानसभा में यह मुद्दा नहीं उठा सकते क्योंकि अभी और काम बहुत बाकी हैं ।
यह वही प्रगट सिंह हैं जब वह आज़ाद विधायक थे तब खुद आकर इस बच्ची के साथ धरने पर बैठ गए थे। अब जब इनकी खुद की सरकार बनी है तब यह हाथ पीछे खींच रहे हैं।
इसका क्या मतलब है ? मतलब साफ है कि यह सरकार नहीं चाहती के प्राइवेट स्कूलों से लाखों करोड़ों पेरेंट्स को आजादी मिले ।
इस वीडियो को जरुर देखें और आगे भी शेयर करें ताकि सरकार की मंशा की जानकारी लोगों तक पहुंचे।
अगर यह बच्ची होंसले के साथ संघर्ष कर सकती है तो फिर आप क्यों नही ?
धन्यवाद
ParentsAssociation Regd Bathinda
सुनाम का एक प्राईवेट स्कूल पेरंट्स की लूट बंद करे।

अपनी खूद स्कूल की दूकान खुला कर एक बडा स्कूल किताबे व ड्रेस बेचनी बंद करे। यह न केवल CBSE की तय गाईड लाईन का उल्लंघन है बल्कि जिला प्रोजेक्ट डायरेक्टर, सर्व शिक्षा अभियान संगरूर की और से 20-3-2016 को जारी आदेशों का उल्लंघन है और स्कूल की मान्यता भी रद्द हो सकती है।

स्कूल अपनी कार्यशैली बदले नही तो संघर्ष का रास्ता अपनाना होगा।

जागो पेरंटस जागो

इस मैसेज को DC Sangrur, ADC Sangrur, DEO Primary, DEO Sec. के साथ Chief Secretary Punjab को कार्यवाही के लिए भेजा जा रहा है।

शीतल पेय को ठण्डा करने के नाम पर MRP से अधिक रुपये वसूली का खेल प्रारम्भ । ग्राहक सतर्क रहे ।

शीतल पेय को ठण्डा करने के नाम पर MRP से अधिक रुपये वसूली का खेल प्रारम्भ । ग्राहक सतर्क रहे ।

#ग्राहक पंचायत ग्वालियर

गर्मी के दिन प्रारंभ हो चुके हैं ।
इन दिनों शीतल पेय को ठंडा करने के नाम पर विक्रेताओं द्वारा एमआरपी से ₹3 र से ₹10 तक ज्यादा वसूले जाते हैं । mrp से ₹1 भी अधिक वसूला जाना नाप तोल अधिनियम के अंतर्गत दंडनीय अपराध है ।
Mrp से ज्यादा मूल्य मांगे जाने पर स्थानीय नापतोल अधिकारी को सूचना देवे । मध्य प्रदेश के नापतोल अधिकारियों के संपर्क सूत्र हेतु
grahaksewa.org को देखे ।

नापतोल अधिकारी द्वारा कार्यवाही ना की जाने की दशा में मध्य प्रदेश के नापतोल नियंत्रक श्री जैन को नम्बर 07552551017 पर शिकायत दर्ज करावें या मेल ( cwnbho@mp.nic.in )करें अन्यथा इस संबंध में स्थानीय ग्राहक पंचायत कार्यकर्ताओं को सूचित करें ।

लोकेन्द्र मिश्रा
9644848617
आशा सिंह
9826248084
दीपक गोड़
7828650476
पुरुषोत्तम कुशवाह
9691526669
संजीव श्रीवास्तव
9826539135

Tuesday, March 21, 2017

मोबाइल टावर रेडिएशन से कैंसर होने का खतरा है।

रेडिएशन से किसे ज्यादा नुकसान होता है?
मैक्स हेल्थकेयर में कंसल्टेंट न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. पुनीत अग्रवाल के मुताबिक मोबाइल रेडिएशन सभी के लिए नुकसानदेह है लेकिन बच्चे, महिलाएं, बुजुर्गों और मरीजों को इससे ज्यादा नुकसान हो सकता है। अमेरिका के फूड एंड ड्रग्स ऐडमिनिस्ट्रेशन का कहना है कि बच्चों और किशोरों को मोबाइल पर ज्यादा वक्त नहीं बिताना चाहिए और स्पीकर फोन या हैंडसेट का इस्तेमाल करना चाहिए, ताकि सिर और मोबाइल के बीच दूरी बनी रहे। बच्चों और और प्रेगनेंट महिलाओं को भी मोबाइल फोन के ज्यादा यूज से बचना चाहिए।
मोबाइल टावर या फोन, किससे नुकसान ज्यादा?
प्रो. गिरीश कुमार के मुताबिक मोबाइल फोन हमारे ज्यादा करीब होता है, इसलिए उससे नुकसान ज्यादा होना चाहिए लेकिन ज्यादा परेशानी टावर से होती है क्योंकि मोबाइल का इस्तेमाल हम लगातार नहीं करते, जबकि टावर लगातार चौबीसों घंटे रेडिएशन फैलाते हैं। मोबाइल पर अगर हम घंटा भर बात करते हैं तो उससे हुए नुकसान की भरपाई के लिए हमें 23 घंटे मिलते हैं, जबकि टावर के पास रहनेवाले उससे लगातार निकलने वाली तरंगों की जद में रहते हैं। अगर घर के समाने टावर लगा है तो उसमें रहनेवाले लोगों को 2-3 साल के अंदर सेहत से जुड़ी समस्याएं शुरू हो सकती हैं। मुंबई की उषा किरण बिल्डिंग में कैंसर के कई मामले सामने आने को मोबाइल टावर रेडिएशन से जोड़कर देखा जा रहा है। फिल्म ऐक्ट्रेस जूही चावला ने सिरदर्द और सेहत से जुड़ी दूसरी समस्याएं होने पर अपने घर के आसपास से 9 मोबाइल टावरों को हटवाया।
मोबाइल टावर के किस एरिया में नुकसान सबसे ज्यादा?
मोबाइल टावर के 300 मीटर एरिया में सबसे ज्यादा रेडिएशन होता है। ऐंटेना के सामनेवाले हिस्से में सबसे ज्यादा तरंगें निकलती हैं। जाहिर है, सामने की ओर ही नुकसान भी ज्यादा होता है, पीछे और नीचे के मुकाबले। मोबाइल टावर से होनेवाले नुकसान में यह बात भी अहमियत रखती है कि घर टावर पर लगे ऐंटेना के सामने है या पीछे। इसी तरह दूरी भी बहुत अहम है। टावर के एक मीटर के एरिया में 100 गुना ज्यादा रेडिएशन होता है। टावर पर जितने ज्यादा ऐंटेना लगे होंगे, रेडिएशन भी उतना ज्यादा होगा।
कितनी देर तक मोबाइल का इस्तेमाल ठीक है?
दिन भर में 24 मिनट तक मोबाइल फोन का इस्तेमाल सेहत के लिहाज से मुफीद है। यहां यह भी अहम है कि आपके मोबाइल की SAR
वैल्यू क्या है? ज्यादा SAR वैल्यू के फोन पर कम देर बात करना कम SAR वैल्यू वाले फोन पर ज्यादा बात करने से ज्यादा नुकसानदेह है। लंबे वक्त तक बातचीत के लिए लैंडलाइन फोन का इस्तेमाल रेडिएशन से बचने का आसान तरीका है। इसे ऐसे भी समझ सकते हैं कि ऑफिस या घर में लैंडलाइन फोन का इस्तेमाल करें। कॉर्डलेस फोन के इस्तेमाल से बचें।
बोलते हैं आंकड़े
-2010 में डब्ल्यूएचओ की एक रिसर्च में खुलासा हुआ कि मोबाइल रेडिएशन से कैंसर होने का खतरा है।
-हंगरी में साइंटिस्टों ने पाया कि जो युवक बहुत ज्यादा सेल फोन का इस्तेमाल करते थे, उनके स्पर्म की संख्या कम हो गई।
-जर्मनी में हुई रिसर्च के मुताबिक जो लोग ट्रांसमिटर ऐंटेना के 400 मीटर के एरिया में रह रहे थे, उनमें कैंसर होने की आशंका तीन गुना बढ़ गई। 400 मीटर के एरिया में ट्रांसमिशन बाकी एरिया से 100 गुना ज्यादा होता है।
-केरल में की गई एक रिसर्च के अनुसार सेल फोन टॉवरों से होनेवाले रेडिएशन से मधुमक्खियों की कमर्शल पॉप्युलेशन 60 फीसदी तक गिर गई है।
-सेल फोन टावरों के पास जिन गौरेयों ने अंडे दिए, 30 दिन के बाद भी उनमें से बच्चे नहीं निकले, जबकि आमतौर पर इस काम में 10-14 दिन लगते हैं। गौरतलब है कि टावर्स से काफी हल्की फ्रीक्वेंसी (900 से 1800 मेगाहर्ट्ज) की इलेक्ट्रोमैग्नेटिक वेव्ज निकलती हैं, लेकिन ये भी छोटे चूजों को काफी नुकसान पहुंचा सकती हैं।
-2010 की इंटरफोन स्टडी इस बात की ओर इशारा करती है कि लंबे समय तक मोबाइल के इस्तेमाल से ट्यूमर होने की आशंका बढ़ जाती है।
रेडिएशन को लेकर क्या हैं गाइडलाइंस?
जीएसएम टावरों के लिए रेडिएशन लिमिट 4500 मिलीवॉट/मी. स्क्वेयर तय की गई। लेकिन इंटरनैशनल कमिशन ऑन नॉन आयोनाइजिंग रेडिएशन (आईसीएनआईआरपी) की गाइडलाइंस जो इंडिया में लागू की गईं, वे दरअसल शॉर्ट-टर्म एक्सपोजर के लिए थीं, जबकि मोबाइल टॉवर से तो लगातार रेडिएशन होता है। इसलिए इस लिमिट को कम कर 450 मिलीवॉट/मी. स्क्वेयर करने की बात हो रही है। ये नई गाइडलाइंस 15 सितंबर से लागू होंगी। हालांकि प्रो. गिरीश कुमार का कहना है कि यह लिमिट भी बहुत ज्यादा है और सिर्फ 1 मिलीवॉट/मी. स्क्वेयर रेडिशन भी नुकसान देता है। यही वजह है कि ऑस्ट्रिया में 1 मिलीवॉट/मी. स्क्वेयर और साउथ वेल्स, ऑस्ट्रेलिया में 0.01 मिलीवॉट/मी. स्क्वेयर लिमिट है।
दिल्ली में मोबाइल रेडिएशन किस लेवल पर है?
2010 में एक मैगज़ीन और कंपनी के सर्वे में दिल्ली में 100 जगहों पर टेस्टिंग की गई और पाया कि दिल्ली का एक-चौथाई हिस्सा ही रेडिएशन से सुरक्षित है लेकिन इन जगहों में दिल्ली के वीवीआईपी एरिया ही ज्यादा हैं। रेडिएशन के लिहाज से दिल्ली का कनॉट प्लेस, नई दिल्ली रेलवे स्टेशन, खान मार्केट, कश्मीरी गेट, वसंत कुंज, कड़कड़डूमा, हौज खास, ग्रेटर कैलाश मार्केट, सफदरजंग अस्पताल, संचार भवन, जंगपुरा, झंडेवालान, दिल्ली हाई कोर्ट को डेंजर एरिया में माना गया। दिल्ली के नामी अस्पताल भी इस रेडिएशन की चपेट में हैं।
किस तरह कम कर सकते हैं मोबाइल फोन रेडिएशन?
-रेडिएशन कम करने के लिए अपने फोन के साथ फेराइट बीड (रेडिएशन सोखने वाला एक यंत्र) भी लगा सकते हैं।
-मोबाइल फोन रेडिएशन शील्ड का इस्तेमाल भी अच्छा तरीका है। आजकल कई कंपनियां मार्केट में इस तरह के उपकरण बेच रही हैं।
-रेडिएशन ब्लॉक ऐप्लिकेशन का इस्तेमाल कर सकते हैं। दरअसल, ये खास तरह के सॉफ्टवेयर होते हैं, जो एक खास वक्त तक वाईफाई, ब्लू-टूथ, जीपीएस या ऐंटेना को ब्लॉक कर सकते हैं।
टावर के रेडिएशन से कैसे बच सकते हैं?
मोबाइल रेडिएशन से बचने के लिए ये उपाय कारगर हो सकते हैं:
-मोबाइल टॉवरों से जितना मुमकिन है, दूर रहें।
-टावर कंपनी से ऐंटेना की पावर कम करने को बोलें।
-अगर घर के बिल्कुल सामने मोबाइल टावर है तो घर की खिड़की-दरवाजे बंद करके रखें।
-घर में रेडिएशन डिटेक्टर की मदद से रेडिएशन का लेवल चेक करें। जिस इलाके में रेडिएशन ज्यादा है, वहां कम वक्त बिताएं।
Detex नाम का रेडिएशन डिटेक्टर करीब 5000 रुपये में मिलता है।
-घर की खिड़कियों पर खास तरह की फिल्म लगा सकते हैं क्योंकि सबसे ज्यादा रेडिएशन ग्लास के जरिए आता है। ऐंटि-रेडिएशन फिल्म की कीमत एक खिड़की के लिए करीब 4000 रुपए पड़ती है।
-खिड़की दरवाजों पर शिल्डिंग पर्दे लगा सकते हैं। ये पर्दे काफी हद तक रेडिएशन को रोक सकते हैं। कई कंपनियां ऐसे प्रॉडक्ट बनाती हैं।
क्या कम सिग्नल भी हो सकते हैं घातक?
अगर सिग्नल कम आ रहे हों तो मोबाइल का इस्तेमाल न करें क्योंकि इस दौरान रेडिएशन ज्यादा होता है। पूरे सिग्नल आने पर ही मोबाइल यूज करना चाहिए। मोबाइल का इस्तेमाल खिड़की या दरवाजे के पास खड़े होकर या खुले में करना बेहतर है क्योंकि इससे तरंगों को बाहर निकलने का रास्ता मिल जाता है।
स्पीकर पर बात करना कितना मददगार?
मोबाइल शरीर से जितना दूर रहेगा, उनका नुकसान कम होगा, इसलिए फोन को शरीर से दूर रखें। ब्लैकबेरी फोन में एक मेसेज भी आता है, जो कहता है कि मोबाइल को शरीर से 25 मिमी (करीब 1 इंच) की दूरी पर रखें। सैमसंग गैलेक्सी एस 3 में भी मोबाइल को शरीर से दूर रखने का मेसेज आता है। रॉकलैंड हॉस्पिटल में ईएनटी स्पेशलिस्ट डॉ. धीरेंद्र सिंह के मुताबिक इलेक्ट्रोमैग्नेटिक रेडिएशन से बचने के लिए स्पीकर फोन या या हैंड्स-फ्री का इस्तेमाल करें। ऐसे हेड-सेट्स यूज करें, जिनमें ईयर पीस और कानों के बीच प्लास्टिक की एयर ट्यूब हो।
क्या मोबाइल तकिए के नीचे रखकर सोना सही है?
मोबाइल को हर वक्त जेब में रखकर न घूमें, न ही तकिए के नीचे या बगल में रखकर सोएं क्योंकि मोबाइल हर मिनट टावर को सिग्नल भेजता है। बेहतर है कि मोबाइल को जेब से निकालकर कम-से-कम दो फुट यानी करीब एक हाथ की दूरी पर रखें। सोते हुए भी दूरी बनाए रखें।
जेब में मोबाइल रखना दिल के लिए नुकसानदेह है?
एस्कॉर्ट्स हार्ट इंस्टिट्यूट में कार्डिएक साइंसेज के चेयरमैन डॉ. अशोक सेठ के मुताबिक अभी तक मोबाइल रेडिएशन और दिल की बीमारी के बीच सीधे तौर पर कोई ठोस संबंध सामने नहीं आया है। लेकिन मोबाइल के बहुत ज्यादा इस्तेमाल या मोबाइल टावर के पास रहने से दूसरी समस्याओं के साथ-साथ दिल की धड़कन का अनियमित होने की आशंका जरूर होती है। बेहतर यही है कि हम सावधानी बरतें और मोबाइल का इस्तेमाल कम करें।
पेसमेकर लगा है तो क्या मोबाइल ज्यादा नुकसान करता है?
डॉ. सेठ का कहना है कि अगर शरीर में पेसमेकर लगा है तो हैंडसेट से 1 फुट तक की दूरी बनाकर बात करें। शरीर में लगा डिवाइस इलेक्ट्रिक सिग्नल पैदा करता है, जिसके साथ मोबाइल के सिग्नल दखल दे सकते हैं। ऐसे में ये शरीर को कम या ज्यादा सिग्नल पहुंचा सकते हैं, जो नुकसानदेह हो सकता है। ऐसे में ब्लूटूथ या हैंड्स-फ्री डिवाइस के जरिए या फिर स्पीकर ऑन कर बात करें। पेसमेकर जिस तरफ लगा है, उस पॉकेट में मोबाइल न रखें।
पेंट की जेब में रखने से क्या स्पर्म्स पर असर होता है?
जाने-माने सेक्सॉलजिस्ट डॉ. प्रकाश कोठारी का मानना है कि मोबाइल रेडिएशन से नुकसान होता है या नहीं, इसका कोई ठोस सबूत नहीं हैं। फिर भी एहतियात के तौर पर आप अपने मोबाइल को कमर पर बेल्ट के साथ लगाएं तो बेहतर होगा।
क्या ब्लूटूथ का इस्तेमाल नुकसान बढ़ाता है?
अगर हम ब्लूटूथ का इस्तेमाल करते हैं, तो हमारे शरीर में रेडिएशन थोड़ा ज्यादा अब्जॉर्ब होगा। अगर ब्लूटूथ ऑन करेंगे तो 10 मिली वॉट पावर अडिशनल निकलेगी। मोबाइल से निकलने वाली पावर के साथ-साथ शरीर इसे भी अब्जॉर्ब करेगा। ऐसे में जरूरी है कि ब्लूटूथ पर बात करते हैं तो मोबाइल को अपने शरीर से दूर रखें। एक फुट की दूरी हो तो अच्छा है।
गेम्स /नेट सर्फिंग के लिए मोबाइल यूज खतरनाक है?
मोबाइल पर गेम्स खेलना सेहत के लिए बहुत नुकसानदेह नहीं है, लेकिन इंटरनेट सर्फिंग के दौरान रेडिएशन होता है इसलिए मोबाइल फोन से ज्यादा देर इंटरनेट सर्फिंग नहीं करनी चाहिए।
SAR की मोबाइल रेडिएशन में क्या भूमिका है?
-कम एसएआर संख्या वाला मोबाइल खरीदें, क्योंकि इसमें रेडिएशन का खतरा कम होता है। मोबाइल फोन कंपनी की वेबसाइट या फोन के यूजर मैनुअल में यह संख्या छपी होती है। वैसे, कुछ भारतीय कंपनियां ऐसी भी हैं, जो एसएआर संख्या का खुलासा नहीं करतीं।
क्या है SAR: अमेरिका के नैशनल स्टैंडर्ड्स इंस्टिट्यूट के मुताबिक, एक तय वक्त के भीतर किसी इंसान या जानवर के शरीर में प्रवेश करने वाली इलेक्ट्रोमैग्नेटिक तरंगों की माप को एसएआर (स्पैसिफिक अब्जॉर्पशन रेश्यो) कहा जाता है। एसएआर संख्या वह ऊर्जा है, जो मोबाइल के इस्तेमाल के वक्त इंसान का शरीर सोख्ता है। मतलब यह है कि जिस मोबाइल की एसएआर संख्या जितनी ज्यादा होगी, वह शरीर के लिए उतना ही ज्यादा नुकसानदेह होगा।
भारत में SAR के लिए क्या हैं नियम?
अभी तक हैंडसेट्स में रेडिएशन के यूरोपीय मानकों का पालन होता है। इन मानकों के मुताबिक हैंडसेट का एसएआर लेवल 2 वॉट प्रति किलो से ज्यादा बिल्कुल नहीं होना चाहिए। लेकिन एक्सपर्ट इस मानक को सही नहीं मानते हैं। इसके पीछे दलील यह दी जाती है कि ये मानक भारत जैसे गर्म मुल्क के लिए मुफीद नहीं हो सकते। इसके अलावा, भारतीयों में यूरोपीय लोगों के मुकाबले कम बॉडी फैट होता है। इस वजह से हम पर रेडियो फ्रीक्वेंसी का ज्यादा घातक असर पड़ता है। हालांकि, केंद्र सरकार द्वारा प्रस्तावित गाइडलाइंस में यह सीमा 1.6 वॉट प्रति किग्रा कर दी गई है, जोकि अमेरिकी स्टैंडर्ड है।
मेट्रो या लिफ्ट में मोबाइल यूज करते वक्त क्या ध्यान रखें?
लिफ्ट या मेट्रो में मोबाइल के इस्तेमाल से बचें क्योंकि तरंगों के बाहर निकलने का रास्ता बंद होने से इनके शरीर में प्रवेश का खतरा बढ़ जाता है। साथ ही, इन जगहों पर सिग्नल कम होना भी नुकसानदेह हो सकता है।
मोबाइल को कहां रखें?
मोबाइल को कहां रखा जाए, इस बारे में अभी तक कोई आम राय नहीं बनी है। यह भी साबित नहीं हुआ है कि मोबाइल को पॉकेट आदि में रखने से सीधा नुकसान है, पेसमेकर के मामले को छोड़कर। फिर भी एहतियात के तौर पर महिलाओं के लिए मोबाइल को पर्स में रखना और पुरुषों के लिए कमर पर बेल्ट पर साइड में लगाए गए पाउच में रखना सही है!!-
Excerpt

Monday, March 20, 2017

SAY NO TO SCHOOL ANNUAL FUNCTION FEE

जय हिंद पैरेन्ट्स
उठो,,, जागो,, आपकी हो रही लूट के खिलाफ उवाज उठाओ । वक़्त आ गया है कि प्राइवेट स्कूलों द्वारा की जा रही मनमानियों के खिलाफ एक जोरदार उवाज बुलंद की जाये । आँखे मीचने से खतरा नही टलेगा ।
जब बच्चा शुरू से एक ही स्कूल में पढ़ रहा ह तो हर साल 15 हजार से 25 हजार रुपए दाखला के नाम पे बसूलना गलत तथा नाजायज़ है । यह सीबीएसई के नियम के खिलाफ है । हर साल मनमर्जी से फीस भी बढ़ाई जाना गलत है ।
और तो और एक ही खास बुक डिपो से इनकी किताबें कापियां मिल रही हैं। मोटा कमिंशंन खा रहे हैं सभी स्कूल ऐसे । जबकि कानून है के सीबीएसई स्कूलों में ncert की किताबें लगनी है तो कियो नही लगाते फिर ? Ncert की किताबे 10 गुना सस्ती और सरकारी हैं , इनमे स्कूलों को कमीशन नही मिलता इसी लिए यह स्कूल मोटा कमीशन खाने के लालच में अपनी मर्जी के पब्लिशर की किताबें लगाते हैं जो एक ही दूकान से मिलती है ।
हर साल स्कूल Annual Function करबाने के नाम पे आपको लूटते हैं । पहले तो यह के यह फंक्शन स्कूल ने कराना होता है अपनी एक साल की प्राप्तियों और वाह वाह के लिए । लेकिन यह स्कूल उसका खर्च भी आप से लेते हैं , प्रति बच्चा कम से कम 500 रुपए । एक स्कूल में कम से कम 3000 बच्चे हैं उस हिसाब से 15 लाख इकठे हुए।अब बताओ आप ही के कितनी कमाई कर ञ यह लोग अपने को बेबकूफ बना के ।
दोस्तों आप लोग कब तक चुप्प बैठोगे । कब तक इन स्कूलों की मनमानी सहते रहोगे । उठो, जागो और इनको बता दो के शिक्षा का व्योपार बंद होना ही चाहिए ।
एक सब्जी वाले से तो सब्जी खरीदते वक़्त 2 रुपए के लिए लड़ झगड़ते हो, फिर आपकी कमाई लूट रहे इन स्कूलों के आगे घुटने क्यों टेक रहे हो ।
यह किसी एक स्कूल की बात नही है यह है हकीकत हर स्कूल की ।
सम्पर्क करें ।

Akhil Bhartiya Grahak Panchyat Bharthana Regd
M:- 9412572326

SAY NO TO ANNUAL CHARGES FOR SCHOOL

प्यारे दोस्तों आज DAV school बठिण्डा दुबारा बच्चो के रिजल्ट बांटे गए है, और साथ में एक PROFORMA
भी सभी पेरेंट्स को दिया गया है,जिसके पिछले तरफ
(DECLARATION)
में दूसरी लाइन पर , ANNUAL CHARGES को लेकर लिखा होया है, की
** हम पेरेंट्स ये मंजूर करते है कि आनुअल चार्जेस को (न तू किसी भी कारण वापिस या एडजस्ट किये जायगे)
यानि जो भी आनुअल चार्जेज पेरेंट्स देगे उसे पेरेंट्स वापिस नही मांग सकते,

सभी पेरेंट्स से अपील है, इस लाइन पर डार्क पेन से [×] का निशान लगा कर ही दे।

अगर सभी पेरेंट्स एक साथ मिलकर चलेगे ,तभी इस लड़ाई को जीता जा सकता है,

कृपया आनुअल चार्जेज को भरने की जल्दी ना करे, वरना कुछ पेरेंट्स की जल्द बाजी के कारण, हमारी शिक्षा के लूटेरो को बरबाद करने की ये लड़ाई कमजोर पड़ जाती है।

Parents Association Bathinda.

Tuesday, March 14, 2017

Condom ads featuring Sunny Leone to be removed from buses

Condom ads featuring Sunny Leone to be removed from buses

The Goa State Commission for Women (GSCW) has directed the state-run Kadamba Transport Corporation Limited (KTCL) to remove condom advertisements.

By   |   Published: 1st Mar 2017  8:38 pm
Panaji: The Goa State Commission for Women (GSCW) has directed the state-run Kadamba Transport Corporation Limited (KTCL) to remove condom advertisements featuring actress Sunny Leone from its buses.
The GSCW directive comes following a petition filed by a women’s NGO Ranaragini to the commission.
The KTCL buses were earlier carrying advertisements of Goa government’s social welfare schemes carrying pictures of Chief Minister Laxmikant Parsekar. However, when the model code of conduct (for the February 4 Goa assembly polls) came into force on January 4, the buses started sporting the ads featuring Sunny Leone.
Talking to PTI, GSWC chairman Vidya Tanavade said, “Based on the complaint filed by Ranaragini, we have issued notices to KTCL as well as district collectors. They have been asked to withdraw the advertisements from the buses and other public spaces, which feature actress Sunny Leone promoting a brand of condoms.”
“The timeframe to pull out the advertisements has not been specified, but we have asked them (KTCL and district collectors) to remove them as soon as possible,” she said.
Ranaragini, in its protest petition to the commission submitted yesterday, had demanded removal of pictures of women in contraceptive advertisements on Kadamba buses and other public places “to save embarrassment for women and protect their dignity”.
The NGO’s petition said, “It has been observed that there is use of women’s pictures in contraceptive advertisements on the corporation buses and elsewhere.” “This is a very ugly scene and it results in embarrassment for women moving at public places. Ranaragini has received complaints regarding this from many women,” Ranaragini’s Rajashree Gadekar said.
KTCL Managing Director Deryk Nato, however, defended the decision saying that the contract to place advertisements on Kadamba buses has been bagged by a Mumbai-based agency.
“The agency has been asked not to advertise tobacco products and drugs on the buses, but condoms do not figure in the list of commodities that are banned from advertising,” he said.

War on misleading Indian medicine ads

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War on misleading Indian medicine ads


Practitioners of these systems mislead public by claiming to cure cancer, diabetes, heart disease.By   |   Published: 6th Mar 2017  1:01 am
Hyderabad: The Central Council of Indian Medicine (CCIM), the statutory body which monitors higher education in Indian systems of medicine under the Union Ministry of AYUSH, is up in arms against phoney, unproven and misleading advertisements issued by practitioners of Indian streams of medicine such as Ayurveda, Sidda and Unani.
The CCIM has issued directives to State registration boards and local AYUSH authorities to start taking action and ‘crack the whip’ on practitioners who tend to saturate public mindspace with misleading advertisements.
In a circular to all the heads of AYUSH, the CCIM said that “By issuing such advertisements, practitioners are misleading the general public by claiming prevention or cure of various diseases such as cancer, diabetes, heart disease and infertility, etc., which is a clear violation of Practitioners of Indian Medicines (Standards of Professional Conduct, Etiquette and Code of Ethics) Regulations, 1982 prescribed by the CCIM.”
No regulatory body
“The problem with Indian medicine is that there is no regulatory body as in the case of allopathy. This has encouraged everybody to claim miracle cures. At some point, someone had to put a stop to the exaggerated claims made by the practitioners of Indian medicine. It is high time that action is initiated against those making such claims,” said CCIM member and former Principal of Government Ayurveda College, Erragadda, Dr. S. Sarangapani.
To further strengthen the regulatory framework and monitor advertisements that are aired in various news mediums, the Ministry of AYUSH has also entered into a collaboration with the Advertisement Standards Council of India (ASCI), which is a self-regulatory voluntary organisation set up by the advertising industry in India.
The AYUSH department has also directed private drug manufacturers to abstain from making advertisements and exaggerated claims in the print and electronic media that may mislead public and tantamount to violation of legal provisions and guidelines of advertising.
“I also urge the State government to make it mandatory for all the AYUSH practitioners to register themselves with the local district health and medical officers, which will bring some sort of accountability. At present, there is no regulation and that’s why anybody can make tall claims through advertisements,” Dr. Sarangapani added.
The circular from AYUSH and CCIM said the State authorities should initiate strict action against ‘the defaulter acting in contravention of the relevant provisions of the Drugs and Magic Remedies (Objectionable Advertisements) Act, 1954, Drugs and Cosmetics Act, 1940 and rules thereunder other prescribed guidelines and code of advertising.”
It is high time that action is initiated against those making such claims," said CCIM member & former Principal of Government Ayurveda College, Erragadda, Dr. S. Sarangapani. http://bit.ly/2lAhR44