खाली पेट लीची खाने से मारे गए बच्चे
बिहार में रहस्यमयी तरीके से सैकड़ों बच्चों की मौत की वजह बनी बीमारी का पता चला है. वैज्ञानिकों का दावा है कि बच्चों की मौत खाली पेट लीची खाने से हुई..
बिहार में रहस्यमयी तरीके से सैकड़ों बच्चों की मौत की वजह बनी बीमारी का पता चला है. वैज्ञानिकों का दावा है कि बच्चों की मौत खाली पेट लीची खाने से हुई..
1990 के दशक में बिहार में गर्मियों में बच्चों की अचानक मौत का सिलसिला शुरू हुआ. हर साल 100 से ज्यादा बच्चे एक ही तरीके से मारे जाने लगे. स्वस्थ होने के बावजूद उन्हें अचानक चक्कर आता, बदन अकड़ जाता और फिर वे बेहोश हो जाते. आधे बच्चे फिर कभी आंख नहीं खोल पाए. डॉक्टरों को पता ही नहीं चला कि ऐसा क्यों हो रहा है.
लेकिन अब अमेरिका और भारत के वैज्ञानिकों ने रहस्यमयी मौतों का कारण खोजने के दावा किया है. मेडिकल साइंस की पत्रिका 'द लैंसेट' में छपे शोध के मुताबिक बच्चे लीची के जहर हाइपोग्लिसिन से मारे गए.
बिहार का मुजफ्फरपुर जिला अपनी लीचियों के लिए मशहूर है. हर साल सीजन के दौरान दर्जनों मजदूर अपने परिवार के साथ बगीचे में ही रहते हैं. वैज्ञानिकों के मुताबिक इस दौरान बच्चों ने अक्सर खाली पेट जमीन पर गिरी हुई लीचियां खायीं.
लीची में एक किस्म का विष हाइपोग्लिसिन होता है जो शरीर में ग्लूकोज के निर्माण को रोक देता है. शरीर में यह जहर जाते ही बच्चों के खून में शुगर की मात्रा अचानक गिर गई. रात में खाना न खाने की वजह से उनके शरीर में पहले ही बहुत कम ऊर्जा थी, ऊपर से शुगर लेवल के और नीचे गिरने से सेहत अचानक बिगड़ गई.
लेकिन अब अमेरिका और भारत के वैज्ञानिकों ने रहस्यमयी मौतों का कारण खोजने के दावा किया है. मेडिकल साइंस की पत्रिका 'द लैंसेट' में छपे शोध के मुताबिक बच्चे लीची के जहर हाइपोग्लिसिन से मारे गए.
बिहार का मुजफ्फरपुर जिला अपनी लीचियों के लिए मशहूर है. हर साल सीजन के दौरान दर्जनों मजदूर अपने परिवार के साथ बगीचे में ही रहते हैं. वैज्ञानिकों के मुताबिक इस दौरान बच्चों ने अक्सर खाली पेट जमीन पर गिरी हुई लीचियां खायीं.
लीची में एक किस्म का विष हाइपोग्लिसिन होता है जो शरीर में ग्लूकोज के निर्माण को रोक देता है. शरीर में यह जहर जाते ही बच्चों के खून में शुगर की मात्रा अचानक गिर गई. रात में खाना न खाने की वजह से उनके शरीर में पहले ही बहुत कम ऊर्जा थी, ऊपर से शुगर लेवल के और नीचे गिरने से सेहत अचानक बिगड़ गई.
खाली पेट लीची खाकर जहर का शिकार हुए बच्चे अचानक चीखते और फिर अकड़कर बेहोश हो जाते. वैज्ञानिकों के मुताबिक मस्तिष्क में बहुत ही खतरनाक सूजन होने से ऐसा चलते होता था. मई और जून 2014 के दौरान मुज्जफरपुर के अस्पताल में भर्ती बच्चों की जांच के दौरान मस्तिष्क में सूजन का पता चला.
ऐसी ही बीमारी कैरेबियाई द्वीपों में भी सामने आ चुकी है. कैरेबियाई द्वीपों में एकी नाम के फल की वजह से ऐसा हो रहा था. एकी में भी लीची की तरह हाइपोग्लिसिन होता है जो शरीर को ग्लूकोज बनाने से रोकता है.
कैरेबिया में हुई रिसर्च के नतीजों को मुज्जफरपुर से मिलाने के बाद ही वैज्ञानिकों ने यह दावा किया. अब मुजफ्फरपुर के लोगों को बताया गया है कि वे अपने बच्चों को पक्के तौर पर रात में खाना खिलाएं. और बच्चों को ज्यादा लीची न खाने दें. अधिकारियों ने इस बात पर भी जोर दिया है कि हाइपोग्लिकैमिया या लो ब्लड शुगर के पीड़ित बच्चों को फौरन इमरजेंसी इलाज मिलना चाहिए.
ऐसी ही बीमारी कैरेबियाई द्वीपों में भी सामने आ चुकी है. कैरेबियाई द्वीपों में एकी नाम के फल की वजह से ऐसा हो रहा था. एकी में भी लीची की तरह हाइपोग्लिसिन होता है जो शरीर को ग्लूकोज बनाने से रोकता है.
कैरेबिया में हुई रिसर्च के नतीजों को मुज्जफरपुर से मिलाने के बाद ही वैज्ञानिकों ने यह दावा किया. अब मुजफ्फरपुर के लोगों को बताया गया है कि वे अपने बच्चों को पक्के तौर पर रात में खाना खिलाएं. और बच्चों को ज्यादा लीची न खाने दें. अधिकारियों ने इस बात पर भी जोर दिया है कि हाइपोग्लिकैमिया या लो ब्लड शुगर के पीड़ित बच्चों को फौरन इमरजेंसी इलाज मिलना चाहिए.
खायें लेकिन संभलकर
सेब
एक सेब रोज, यह सलाह हर कोई देता है. लेकिन इसके बीज नहीं खाने चाहिए. सेब के बीज में एमिगडलिन होता है. पाचक रसों से मिलने पर यह हाइड्रोजन साइनाइड बना सकता है. इसीलिए बेहतर है कि सेब खाएं और उसके बीज नहीं.
सेब
एक सेब रोज, यह सलाह हर कोई देता है. लेकिन इसके बीज नहीं खाने चाहिए. सेब के बीज में एमिगडलिन होता है. पाचक रसों से मिलने पर यह हाइड्रोजन साइनाइड बना सकता है. इसीलिए बेहतर है कि सेब खाएं और उसके बीज नहीं.
आलू
बहुत ही लंबे समय तक रखे गए आलू को खाने से बचें. आलू के अंकुर में विषैला ग्लाइकोएल्केलायड होता है. कच्चे और हरे आलू को भी न खाएं. उसमें सोलैनिन होता है जो सेहत के लिए अच्छा नहीं होता.
बहुत ही लंबे समय तक रखे गए आलू को खाने से बचें. आलू के अंकुर में विषैला ग्लाइकोएल्केलायड होता है. कच्चे और हरे आलू को भी न खाएं. उसमें सोलैनिन होता है जो सेहत के लिए अच्छा नहीं होता.
फुगु मछली
जापान में फुगु मछली को लजीज माना जाता है. लेकिन इसे पकाने में बेहद सावधानी बरतनी पड़ती है. इस मछली के लिवर में टेट्रोडोटॉक्सिन होता है. यह साइनाइड से 1,200 गुना ज्यादा जहरीला होता है.
जापान में फुगु मछली को लजीज माना जाता है. लेकिन इसे पकाने में बेहद सावधानी बरतनी पड़ती है. इस मछली के लिवर में टेट्रोडोटॉक्सिन होता है. यह साइनाइड से 1,200 गुना ज्यादा जहरीला होता है.
टमाटर
हरे टमाटर नहीं खाने चाहिए. इनमें भी सोलैनिन होता है. इसका सेवन करने से सिरदर्द और उल्टी की शिकायत हो सकती है.
हरे टमाटर नहीं खाने चाहिए. इनमें भी सोलैनिन होता है. इसका सेवन करने से सिरदर्द और उल्टी की शिकायत हो सकती है.
जायफल
इसकी चुटकी भर मात्रा नुकसान नहीं पहुंचाती. लेकिन अगर एक बार में चार ग्राम से ज्यादा जायफल खाया जाए तो नाक बहने और सिरदर्द होने की समस्या हो सकती है. असल में जायफल में एलेमिसिन, मिरिस्टिसिन और सैफरोल तत्व होते हैं जो नशीले भी होते हैं.
इसकी चुटकी भर मात्रा नुकसान नहीं पहुंचाती. लेकिन अगर एक बार में चार ग्राम से ज्यादा जायफल खाया जाए तो नाक बहने और सिरदर्द होने की समस्या हो सकती है. असल में जायफल में एलेमिसिन, मिरिस्टिसिन और सैफरोल तत्व होते हैं जो नशीले भी होते हैं.
बादाम
बहुत ज्यादा मात्रा में जंगली बादाम खाने से बचना चाहिए. ज्यादा सेवन से शरीर पर विषैला असर होता है. बादाम अगर कड़वा हो, तो ना खाएं.
बहुत ज्यादा मात्रा में जंगली बादाम खाने से बचना चाहिए. ज्यादा सेवन से शरीर पर विषैला असर होता है. बादाम अगर कड़वा हो, तो ना खाएं.
जैतून का तेल
इसके कई फायदे हैं. लेकिन छोंक लगाने के लिए इसका इस्तेमाल नहीं करना चाहिए. 180 डिग्री से ज्यादा गर्म होने पर ओलिव ऑयल के तत्व विषैले कपाउंड में बदलने लगते हैं.
इसके कई फायदे हैं. लेकिन छोंक लगाने के लिए इसका इस्तेमाल नहीं करना चाहिए. 180 डिग्री से ज्यादा गर्म होने पर ओलिव ऑयल के तत्व विषैले कपाउंड में बदलने लगते हैं.
ब्रेड
ब्रेड कई प्रकार की होती है. इन्हें आटे या मैदे से बनाया जाता है. लेकिन गूंथे हुए मैदे पर खमीर चढ़ने के दौरान पोटेशियम ब्रोमेट बनता है. हालांकि ब्रेड बनाने के दौरान यह ब्रोमेट ब्रोमाइड में बदल जाता है. लेकिन अगर ब्रेड बनाने में सावधानी न बरती जाए तो ब्रोमेट बरकरार रहता है और ट्यूमर जैसी घातक बीमारी दे सकता है.
Source- DW
ब्रेड कई प्रकार की होती है. इन्हें आटे या मैदे से बनाया जाता है. लेकिन गूंथे हुए मैदे पर खमीर चढ़ने के दौरान पोटेशियम ब्रोमेट बनता है. हालांकि ब्रेड बनाने के दौरान यह ब्रोमेट ब्रोमाइड में बदल जाता है. लेकिन अगर ब्रेड बनाने में सावधानी न बरती जाए तो ब्रोमेट बरकरार रहता है और ट्यूमर जैसी घातक बीमारी दे सकता है.
Source- DW
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