Wednesday, February 28, 2018
फ्लाइट छूटने की जिम्मेदार एयरलाइन से दोनों को दो लाख रुपये का मुआवजा देने को कहा गया है।
हिमाद्री सरकार, कोलकाता
दिल्ली एयरपोर्ट से न्यू यॉर्क जा रहे कपल की फ्लाइट छूटने की जिम्मेदार एयरलाइन से दोनों को दो लाख रुपये का मुआवजा देने को कहा गया है। कपल को कोलकाता से दिल्ली और फिर दिल्ली से न्यू यॉर्क जाना था। कोलकाता एयरपोर्ट पर उनकी दिल्ली जाने वाली फ्लाइट ही खराब मौसम के चलते डिले हो गई थी, जिसके बाद जब वह दिल्ली पहुंचे तो उनकी फ्लाइट न्यू यॉर्क के लिए जा चुकी थी। दोनों को अगली फ्लाइट के लिए न सिर्फ लंबा इंतजार करना पड़ा बल्कि दोबारा टिकट के पैसे भी चुकाने पड़े थे। इसके बाद दोनों कंज्यूमर कोर्ट गए थे।
न्यू यॉर्क जाने में हुई परेशानी के अलावा हुए समय और वक्त के नुकसान के चलते कपल ने कंज्यूमर प्रटेक्शन कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। उन्होंने सवाल उठाए थे कि फ्लाइट देर से उड़ने का खामियाजा यात्री को क्यों भुगतना पड़े? यह स्पष्ट था कि पीड़ित पक्ष की गलती नहीं थी। पीड़ित पक्ष ने जवाब मांगा कि कोलकाता में फ्लाइट डिले होने के लिए वे जिम्मेदार नहीं हैं, ऐसे में उन्हें टिकट के पैसे दोबारा क्यों चुकाने पड़े और न्यू यॉर्क की फ्लाइट छूटने पर नुकसान क्यों उठाना पड़ा?
क्या है मामला?
10 जनवरी 2014 को बनिबृता पोद्दार को दिल्ली-लंदन जाते हुए न्यू यॉर्क जाना था। दिल्ली से लंदन के लिए उनकी फ्लाइट 1 बजकर 55 मिनट पर, तो वहीं कोलकाता से दिल्ली की फ्लाइट 9 बजकर 50 मिनट पर शेड्यूल थी। कोलकाता से उनकी फ्लाइट खराब मौसम के चलते डिले कर दी गई थी। उन्होंने फौरन एयरलाइन ऑफिस से बात की और किसी और फ्लाइट में उनके जाने की व्यवस्था करने को कहा। उन्होंने एयरलाइन कंपनी से बताया कि अगर उन्हें देर हुई तो उनकी लंदन की फ्लाइट छूट सकती है, लेकिन उन्हें कोई मदद नहीं मिली। डिले की गई फ्लाइट से जब वह दिल्ली पहुंचे तो उनकी लंदन की फ्लाइट छूट चुकी थी।
एयरलाइन ने जवाब में कहा था कि मौसम खराब होगा इसकी कोई पहले से जानकारी नहीं होती और मौसम खराब होना एयरलाइंस की गलती भी नहीं है। एयरलाइन ने कहा था कि ऐसे में उसे जिम्मेदार नहीं माना जाना चाहिए। राज्य उपभोक्ता न्यायालय ने एयरलाइन की ओर से दी गई दलीलों को खारिज करते हुए उसे दोषी मानते हुए कार्रवाई की है। श्यामल गुप्ता और उत्पल कुमार भट्टाचार्य ने एयरलाइन को पीड़ित कपल को दो लाख रुपये का मुआवजा देने के लिए कहा है।
दिल्ली एयरपोर्ट से न्यू यॉर्क जा रहे कपल की फ्लाइट छूटने की जिम्मेदार एयरलाइन से दोनों को दो लाख रुपये का मुआवजा देने को कहा गया है। कपल को कोलकाता से दिल्ली और फिर दिल्ली से न्यू यॉर्क जाना था। कोलकाता एयरपोर्ट पर उनकी दिल्ली जाने वाली फ्लाइट ही खराब मौसम के चलते डिले हो गई थी, जिसके बाद जब वह दिल्ली पहुंचे तो उनकी फ्लाइट न्यू यॉर्क के लिए जा चुकी थी। दोनों को अगली फ्लाइट के लिए न सिर्फ लंबा इंतजार करना पड़ा बल्कि दोबारा टिकट के पैसे भी चुकाने पड़े थे। इसके बाद दोनों कंज्यूमर कोर्ट गए थे।
न्यू यॉर्क जाने में हुई परेशानी के अलावा हुए समय और वक्त के नुकसान के चलते कपल ने कंज्यूमर प्रटेक्शन कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। उन्होंने सवाल उठाए थे कि फ्लाइट देर से उड़ने का खामियाजा यात्री को क्यों भुगतना पड़े? यह स्पष्ट था कि पीड़ित पक्ष की गलती नहीं थी। पीड़ित पक्ष ने जवाब मांगा कि कोलकाता में फ्लाइट डिले होने के लिए वे जिम्मेदार नहीं हैं, ऐसे में उन्हें टिकट के पैसे दोबारा क्यों चुकाने पड़े और न्यू यॉर्क की फ्लाइट छूटने पर नुकसान क्यों उठाना पड़ा?
क्या है मामला?
10 जनवरी 2014 को बनिबृता पोद्दार को दिल्ली-लंदन जाते हुए न्यू यॉर्क जाना था। दिल्ली से लंदन के लिए उनकी फ्लाइट 1 बजकर 55 मिनट पर, तो वहीं कोलकाता से दिल्ली की फ्लाइट 9 बजकर 50 मिनट पर शेड्यूल थी। कोलकाता से उनकी फ्लाइट खराब मौसम के चलते डिले कर दी गई थी। उन्होंने फौरन एयरलाइन ऑफिस से बात की और किसी और फ्लाइट में उनके जाने की व्यवस्था करने को कहा। उन्होंने एयरलाइन कंपनी से बताया कि अगर उन्हें देर हुई तो उनकी लंदन की फ्लाइट छूट सकती है, लेकिन उन्हें कोई मदद नहीं मिली। डिले की गई फ्लाइट से जब वह दिल्ली पहुंचे तो उनकी लंदन की फ्लाइट छूट चुकी थी।
एयरलाइन ने जवाब में कहा था कि मौसम खराब होगा इसकी कोई पहले से जानकारी नहीं होती और मौसम खराब होना एयरलाइंस की गलती भी नहीं है। एयरलाइन ने कहा था कि ऐसे में उसे जिम्मेदार नहीं माना जाना चाहिए। राज्य उपभोक्ता न्यायालय ने एयरलाइन की ओर से दी गई दलीलों को खारिज करते हुए उसे दोषी मानते हुए कार्रवाई की है। श्यामल गुप्ता और उत्पल कुमार भट्टाचार्य ने एयरलाइन को पीड़ित कपल को दो लाख रुपये का मुआवजा देने के लिए कहा है।
Monday, February 26, 2018
Grahakjago (S.K.Virmani)©: Are Electricity Companies in Haryana like DHBVN ad...
Grahakjago (S.K.Virmani)©: Are Electricity Companies in Haryana like DHBVN ad...: Are Electricity Companies in Haryana like DHBVN adapting to unethical business practices? Two Distribution Companies (DISCOM) viz. Daks...
Sunday, February 25, 2018
One day imprisonment was awarded this month to 4 parents for allowing their minor children to drive.
Hyderabad : One day imprisonment was awarded this month to 4 parents for allowing their minor children to drive. Traffic police have now started asking the courts to award imprisonment to the parents of the young offenders and to send the youngsters themselves to juvenile homes if required. Several major accidents have been caused because minors have been driving.
The courts have also decided to send the underage drivers to juvenile homes if they repeat the offence. In recent past two accidents have pushed the police to become more strict. In one case where 14 year old was driving a vehicle and trying to overtake a lorry, 12 year old pillion rider fell down and crushed under a lorry.
Two minors were killed and one injured in another case, when the bike they had taken for a joy ride skidded off the road in Humayun Nagar. “We have been charge sheeting those less than 18 years of age and their parents along with the owner of the vehicle for Minor Driving. The courts have been awarding imprisonment to the parents in recent days. Minor driving have become rampant in the city”, said DCP Traffic A V Rangnath. He further said in case they repeat the offence minors will be sent to juvenile homes and the parents will be imprisoned.
“If the parents allow their kids to drive it is their mistake. We started concentrating on the parents. Its high time we start blaming parents because minors have no right to kill others on the roads.”said the police official.
शिकायतो का निराकरण करने के बजाये दबाव बनाकर फर्जी प्रकार से शिकायते बंद कराना यह है निगम रतलाम की कार्यशैली ।
शिकायतो का निराकरण करने के बजाये दबाव बनाकर फर्जी प्रकार से शिकायते बंद कराना यह है निगम रतलाम की कार्यशैली ।
दिनांक 8 जनवरी 2018 को CM हेल्पलाइन पर एक शिकायत दर्ज कराई , जिसमें दीनदयाल नगर में पानी की टंकी के चारों ओर बनाए गए चैंबरों के निर्माण की अनियमितता को बताया इन चैंबरों को सड़क से 1 फीट ऊपर बनाया गया है । तथा जिन्हें खुला छोड़ दिया गया ।
आए दिन इन चैंबरों में दिन में या रात में वाहन चालक टकरा कर गिर रहे हैं कई बार कार इन चैंबरों में गिर चुकी है , किसी की भी जान जा सकती है ।
मेरी शिकायत के संदर्भ में नगर निगम से 11 जनवरी को भूपेंद्र सिंह नामक अधिकारी का फोन आया और मुझे कहा गया कि दो-तीन दिन में इन चैंबरों को ठीक कर दिया जाएगा ।
लेकिन 19 जनवरी तक इन नंबरों पर कोई कार्य नहीं किया गया मैंने 19 जनवरी को मोबाइल सिंह को नगर निगम में संपर्क कर इन चैंबरों को ठीक करने का आग्रह किया लेकिन उनके द्वारा कोई कार्य नहीं किया गया। तत्पश्चात मैंने पुनः CM हेल्पलाइन पर 10 फरवरी को शिकायत के संदर्भ में सूचित किया तत्पश्चात नगर निगम से आचार्य जी जो कि अपने आप को इंजीनियर बता रहे थे का फोन आने लगा और मुझसे दबाव डालते हुए कहा गया कि मैं शिकायत वापस ले लूं लेकिन चेंबर को ढकने का कोई कार्य नही किया गया। आज दिनांक 20 फरवरी को इंजीनियर आचार्य द्वारा CM हेल्पलाइन की शिकायत पर प्रतिवेदन डाला कि संबंधित शिकायत को निराकरण कर दिया गया है लेकिन वास्तविकता है कि आज तक वह चेंबर खुले पड़े हैं और रोज दुर्घटनाएं घटित हो रही हैं ।
शिकायत बंद करने के लिए कॉल लगा लगा कर निगम के अधिकारियो ने परेशान कर दिया , लेकिन हमने भी ठान लिया है की निराकरण कराकर ही मानेंगे ।
ऐसा प्रतीत होता है कि नगर निगम अधिकारी दीनदयाल नगर के खुले चैंबरों में किसी व्यक्ति की मौत का इंतजार कर रहे हैं । मैं बताना चाहूंगा कुछ दिनों पूर्व दो बत्ती चौराहे पर जिला न्यायालय में पदस्थ जोशी जी अपनी जान से हाथ गंवा चुके हैं जिसमें नगर निगम द्वारा लगाए गए सिग्नलों की टाइमिंग के कारण दुर्घटना होना समझा गया था ऐसे ही आज दीनदयाल नगर में यह खुले बड़े चेंबर किसी की मौत का कारण बन सकते हैं ।
यह भी हो सकता है खुले चैंबरों को पूर्व में ही कागजों में ढक दिया गया हो और उनका पूरा पैसा नगर निगम अधिकारी खा गए हो । मेरा निवेदन है रतलाम की जनता से कि अपने क्षेत्रों में खुले चेम्बरो की और ध्यान देवे , ताकि कोई दुर्घटना घटित ना हो और दबाव बंनाने पर फर्जी प्रकार से शिकायत बंद ना करावे ।
सोमेश वर्मा
रतलाम
सोमेश वर्मा
रतलाम
Saturday, February 24, 2018
sugertreat ment
मैं शुगर का 40 वर्ष पुराना मरीज था। मैं 70 यूनिट इन्सुलिन प्रतिदिन लेता था। मेरे अनुसंधान से मुझे एक आयुर्वेदिक कॉम्बिनेशन का पता चला। समाज सेवा हेतु लागत मूल्य पर कोरियर से उपलब्ध है।
P.G. Tayal (Former Bank Branch Manager SBI)
Contact - 8126877678, 9917270625
6/69, Radhapuram Estate, Mathura
P.G. Tayal (Former Bank Branch Manager SBI)
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6/69, Radhapuram Estate, Mathura
Friday, February 23, 2018
Wednesday, February 21, 2018
Tuesday, February 20, 2018
दिल्ली के 4 हॉस्पिटल दवाओं पर ले रहे 1737% तक मुनाफा, MRP में हो रही हेरफेर : रिपोर्ट
दिल्ली के 4 हॉस्पिटल दवाओं पर ले रहे 1737% तक मुनाफा, MRP में हो रही हेरफेर : रिपोर्ट
एक ओर जहां सरकार का फोकस है कि मरीजों को सस्ता इलाज मिले, वहीं प्राइवेट हॉस्पिटल्स मरीजों को ठगने में लगे हैं। नेशनल फार्मासिटिकल अथॉरिटी (एनपीपीए) की स्टडी में यह बात सामने आई कि दिल्ली-एनसीआर के प्राइवेट हॉस्पिटल्स एमआरपी में हेरफेर करके दवाओं, सिरिंज और दूसरी मेडिकल डिवाइस और डाइग्नोस्टिक पर 1737 फीसदी तक मुनाफा कमा रहे हैं। एनपीपीए ने यह स्टडी 4 बड़े और नामी हॉस्पिटल्स पर की है। एनपीपीए ने यह रिपोर्ट अपनी वेबसाइट पर भी जारी की है। हालांकि, एनपीपीए ने इन हॉस्पिटल्स के नाम नहीं बताए हैं।
बाहर से दवा खरीदने का ऑप्शन नहीं
- स्टडी में सामने आया है कि दवा या मेडिकल डिवाइस बनाने वाली कंपनियों से प्रोडक्ट खरीदकर ये हॉस्पिटल अपने हिसाब से एमआरपी तय करते हैं। इसी एमआरपी पर सैकड़ों गुना का अंतर होता है।
- अस्पताल ये प्रोडक्ट अपनी मेडिकल शॉप के जरिए मरीजों को बेचते हैं। मरीजों को बाहर से दवा या मेडिकल डिवाइस खरीदकर की इजाजत नहीं होती है।
- स्टडी में सामने आया है कि दवा या मेडिकल डिवाइस बनाने वाली कंपनियों से प्रोडक्ट खरीदकर ये हॉस्पिटल अपने हिसाब से एमआरपी तय करते हैं। इसी एमआरपी पर सैकड़ों गुना का अंतर होता है।
- अस्पताल ये प्रोडक्ट अपनी मेडिकल शॉप के जरिए मरीजों को बेचते हैं। मरीजों को बाहर से दवा या मेडिकल डिवाइस खरीदकर की इजाजत नहीं होती है।
कैसे ठग रहे हैं हॉस्पिटल?
1) एनपीपीए का कहना है कि ये हॉस्पिटल फार्मा इंडस्ट्री पर दबाव डालते हैं और बल्क में दवाएं खरीदने के बदले में उनसे एमआरपी बढ़ाकर लिखने को कहते हैं। वे इंडस्ट्री से ऐसा करवाने में कामयाब भी हो जाते हैं।
1) एनपीपीए का कहना है कि ये हॉस्पिटल फार्मा इंडस्ट्री पर दबाव डालते हैं और बल्क में दवाएं खरीदने के बदले में उनसे एमआरपी बढ़ाकर लिखने को कहते हैं। वे इंडस्ट्री से ऐसा करवाने में कामयाब भी हो जाते हैं।
2) एनपीपीए का कहना है कि दवा, मेडिकल डिवाइस और डायग्नोसिटक का बिल मरीजों के कुल खर्च का करीब 46 फीसदी होता है। जबकि मरीज जब हॉस्पिटल जाता है तो उनके द्वारा जो पैकेज बताया जाता है, उसमें ये खर्च नहीं जुड़े होते हैं। यानी उसे हॉस्पिटल के पैकेज से दोगुना तक खर्च करना पड़ता है और उसका पूरा बजट बिगड़ जाता है।
किन चीजों पर कितना मुनाफा कमा रहे हॉस्पिटल?
- मेडिकल डिवाइसेज पर 350% से 1700%
- जो दवाएं सरकार के प्राइस कंट्रोल के दायरे में नहीं है, उन पर 160% से 1200%
- जो दवाएं प्राइस कंट्रोल के दायरे में है, उन पर 115% से 360%
- अस्पतालों को सबसे ज्यादा फायदा नॉन शिड्यूल्ड मेडिकल डिवाइसेज जैसे- सिरिंज पर हो रहा है।
क्या कहना है एनपीपीए का?
- एनपीपीए का कहना है कि यह साफतौर पर मार्केट सिस्टम का फेल्योर है, जिसकी वजह से हॉस्पिटल गलत तरीके से मुनाफा कमाने में लगे हैं। सिर्फ अपने फायदे के लिए एमआरपी से खिलवाड़ करना साफतौर पर मार्केट के नियमों के खिलाफ है।
मरीजों की शिकायत के बाद स्टडी
- एनपीपीए ने यह स्टडी कई मरीजों की ओर से तगड़ा बिल बनाने की शिकायत आने के बाद की है।
- मरीजों का कहना है कि हॉस्पिटल पहले जो पैकेज बताते हैं, उससे 3 या 4 गुना ज्यादा का बिल बना देते हैं।
- मरीजों का कहना है कि हॉस्पिटल पहले जो पैकेज बताते हैं, उससे 3 या 4 गुना ज्यादा का बिल बना देते हैं।
रिपोर्ट में कहा गया है कि सबसे ज्यादा कमाई नॉन शेड्यूल्ड इक्युपमेंट्स जैसे- सिरिंज पर की जा रही है।
Sunday, February 18, 2018
80 पैसे प्रतिदिन के हिसाब से 50 हजार तक की गाय-भैंस का एक साल के लिए करा सकते हैं बीमा
लखनऊ। डेयरी और पशुपालकों को सबसे ज्यादा नुकसान उस वक्त होता है जब किसी की गाय-भैंस या बकरी की मौत हो जाती है। ऐसी दशा में किसान की उसके दूध आदि से होने वाली आमदनी तो जाती ही है, हजारों रुपए के पशु की मौत होने से जमा पूंजी भी डूब जाती हैं।
लेकिन पशुपालक अगर थोड़ी सावधानी बरतें और पशुओं का बीमा करा लें तो वो ऐसे जोखिम से बच सकते हैं। सरकार की योजना के तहत एक पशुपालक अपनी 50 हजार रुपए तक की गाय-भैंस का बीमा सिर्फ 80 पैसे रोज में एक साल के लिए करवा सकता है। पशुपालकों के जोखिम को कम करने के लिए पशु बीमा योजना का सामान्य परिस्थितियों में 50 फीसदी प्रीमियम केंद्र सरकार, 25 फीसदी राज्य सरकार और बाकी का 25 फीसदी लाभार्थी को देना होता है।
पिछले वर्ष शुरू हुई इस योजना के तहत पशु के बाजार मूल्य के आधार पर बीमित किया जाता है। गाय और भैंस का मूल्य उसके प्रतिदिन देय दूध या उसके ब्यात पर निर्भर करता है। पशु की न्यूनतम बाजार दर गाय के लिए 3000 रुपए प्रति लीटर और भैंस के लिए 4000 रुपए लीटर है। इसके अलावा राज्य सरकार द्वारा मान्य स्थानीय बाजार पर भी बीमा किया जा सकता है।
पशुपालन विभाग के अनुसार यूपी में एक साल में डेढ़ लाख से ज्यादा पशुओं का बीमा किया जा चुका है। उत्तर प्रदेश पशुधन विकास परिषद के मुख्य कार्रकारी अधिकारी डॉ. एएन सिंह बताते हैं, “योजना काफी सफल रही है, प्रीमियम का बड़ा हिस्सा सरकार खुद ही दे रही हैं। ऐसे में मात्र कुछ रुपए प्रतिदिन का देकर पशुपालक किसी जोखिम से बच सकते हैं। हम लोग लोगों को जागरूक करने के लिए कई तरह के प्रयास भी कर रहे हैं।’
उत्तर प्रदेश में बीमा का जिम्मा ओरिएटंल इंश्योरेंस कं. लिमिटेड को दिया गया है। जिसके तहत दो तरह से बीमा किया जाता है। अगर सिर्फ मृत्यु या चोरी आदि के लिए बीमा कराना है तो बीमा की दर पशु के मूल्य की 2.32 फीसदी होगी एक साल के लिए, जबकि अगर इसमें पूर्ण विकलांगता शामिल किया जाता है तो ये दर बढ़कर 2.98 फीसदी हो जाता है।
19वीं पशुगणना के अनुसार भारत में कुल 51.2 करोड़ पशु हैं। जबकि उत्तर प्रदेश में पशुओं की संख्या 4 करोड़ 75 लाख (गाय-भैंस, बकरी, भेड़ आदि सब) है। उत्तर प्रदेश दुग्ध उत्पादन के क्षेत्र में सबसे आगे हैं। लेकिन कुछ साल पहले तक बीमा सिर्फ प्रगतिशील डेयरी किसान ही कराते थे, इस योजना में आम किसानों को तवज्जो दी गई है।
योजना को छोटे किसानों के लिए लाभकारी बताते हुए गोरखपुर के पशु चिकित्साधिकारी आैर पीवीएस एसोसिएशन उत्तर प्रदेश राकेश शुक्ला बताते हैं, “हमारे गोरखपुर में एक साल में 3200 पशुओं बीमा हुआ है। इस दौरान 50-60 पशुपालकों को जानवर की क्षति होने पर बीमा भी मिला है। योजना का लाभ पाने के लिए कोई ज्यादा कागजी भी नहीं है, बस जिले के पशु चिकित्सक के यहां आवेदन करना है। पशुपालक के पास आधार और बैंक खाता होना चाहिए मृत्यु होने पर पैसा खाते में आता है। बाकी काम बीमा और विभाग के कर्मचारी खुद करते हैं।’
प्रीमियम का गणित और गुणाभाग सरल शब्दों में बताते हुए वो कहते हैं, 10 हजार रुपए तक के पशु के लिए जो प्रीमियम सामान्य पशुपालक को देना है वो है मात्र 58 रुपए। यानि हर 10 हजार पर 58 रुपए। ऐसे में अगर किसी भैंस का मूल्य 50 हजार है तो उसका सालाना प्रीमियम 280 रुपए होगा।’ यानि रोज का महज 80 पैसे। इसी तरह अगर किसी बकरी का मूल्य 2000 रुपए है तो उसके लिए पशुपालक को करीब 12 रुपए देने होंगे। योजना पहले से पारदर्शी है जिसमें वाट्सएप नंबर से क्लेम की स्टेटस भी जानी जा सकती है, साथ ही र्काई शंका होने पर सीधे मोबाइल से संपर्क किया जा सकता है। योजना में एजेंट बनने पर युवाओं को रोजगार भी मिल सकता है जिसके लिए प्रति पशु बीमा कराने पर 50 रुपए दिए जाते हैं।
योजना में पिछड़े लोगों का खास ख्याल रखा गया है। चंदौली, मिर्जापुर और सोनभद्र को छोड़कार बाकी 72 जिलों में बीपीएल, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लाभार्थियों के लिए केंद्र 40 फीसदी, राज्य 50 फीसदी जबकि लाभार्थी को सिर्फ 10 फीसदी प्रीमियम देना होता है, जो ऊपर खबर में किए गए गणित से भी काफी कम होगा। अनुसूचित जाति के पशुपालकों के लिए केवल 23 रुपए प्रति 10000 कीमत के पशु के लिए प्रीमियम देय है।
पशुपालकों जबकि लेफ्ट विंग एक्सट्रीमिस्ट तीन जिलों( चंदौली, मिर्जापुर और सोनभद्र ) में बीपीएल, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए केंद्र 50 फीसदी और राज्य सरकार 50 फीसदी प्रीमियम में हिस्सेदारी देते हैं यानी इन जिलों के उक्त वर्गों में आने वाले पशुपालकों के लिए ये योजना पूरी तरह मुफ्त है। लेकिन इन्हीं तीन जनपदों के बाकी वर्गों के लिए लाभार्थी को 15 फीसदी बीमा प्रीमियम का वहन करना होगा।योजना को लेकर पशुधन विकास परिषद में पशु चिकित्साधिकारी डॉ. वीनू पांडेय बताती हैं, “योजना के तहत छोटे और मंझोले पशुपालकों पर पूरा जोर है, ज्यादा से ज्यादा छोटे किसानों को लाभ मिले इसके लिए एक लाभार्थी के 5 बड़े पशुओं को भी बीमा के दायरे में लाया गया है।”
बीमा कराने तरीका, लाभ पाने का तरीका
- जिले के पशुचिकित्सा अधिकारी के यहां आवेदन करें।
- लाभार्थी के पास आधार कार्ड और बैंक खाता होना जरुरी है।
- बीमा कंपनी के कर्माचरी, पशु चिकित्सक की मौजूदरी में पशु का मूल्य निर्धाकरण कर उसके कान में एक टैग (बिल्ला) लगाएंगे। किसान को इस टैग और पशु के साथ एक फोटो कंपनी में जमा करानी होगी।
- मृत्यु होने पर पशुपालकों को बीमा कंपनी को तुरंत सूचना देनी होगी। बीमा कंपनी का एजेंट शव का मुआयना करेगा जिसके बाद चिकित्सका पोस्टमार्टम करेंगे,।
- पशु मृत्यु का दावा फार्म, पोस्टमार्टम रिपोर्ट, पशु के कान का टैग, मूल्याकन पत्र बीमा कंपनी को उपलब्ध कराने पर 15 दिनों में बीमा कंपनी दावों का निस्तारण करेंगी और एक महीने, ज्यादा से ज्यादा तीन महीनों में बीमे का पैसा खाते में जाएगे।
- बीमा का पैसा, पशु की उम्र, दूध देने की स्थिति आदि के अनुसार पशु मूल्य के अनुपात में कम हो सकता है।
rera
Dear Jhala Group- You have sold flat in Simplicity with all wrong promises and we are feeling cheated & tortured by paying our hard earn money as there is No Water, No maintenance and No one to resolve our issues!! Worst experience with Jhala group
A guide to buyers’ rights when Rera rejects project registration application
The Punjab Real Estate Regulatory Authority (PRera) recently rejected the registration application for a project of a builder based in New Chandigarh (Mullanpur) for want of requisite approvals and licences from the authorities.
On the rejection of the application, one of the nearly 500 plot allottees in the project, Ram Krishan Goel, based in Sirsa, said, “I had bought a plot in the project in 2011. I was promised possession by the end of 2013. But the builder hasn’t delivered yet. This is the case with most allottees. We were hoping we would approach the state Rera against the builder for failing to deliver the project on time. But now the application of the builder for registration of the project has been rejected so we cannot complain against him. We are clueless on what happens to the plot we bought and whether we can get justice when the project is not registered with the state Rera.”
No complaint if project not registered with PRera
In a landmark order in the Bikramjit Singh versus M/s HP Singh case, the PRera held that complaints against promoters in relation to the projects that are not registered with the authority will not be maintainable before it. In the same order, the authority also cleared the ambiguity regarding the maintainability of any complaint where the alleged builder violations took place prior to the commencement of the Real Estate (Regulation and Development) Act (Rera Act). It laid down three conditions that must be fulfilled for such complaints to be considered by it. Firstly, the alleged violations, though commencing before the enforcement of the Rera Act, must be continuing till date; secondly, the alleged violations must also constitute a contravention of the Rera Act and the rules and regulations made thereunder; and thirdly, the issue should not have been decided or be pending in any forum/court before approaching this authority. This is necessary to avoid multiplicity of litigation. The order reads, “Only if all the three conditions are fulfilled, and the onus would on the complainant to prove these, would any alleged violations that took place before the coming into force of this Act (Rera Act) be considered by this authority”.
Mandatory project registration
Under Section 3 of the real estate (regulation and development) Act, no promoter can advertise, market, book, sell or offer for sale, or invite persons to purchase in any manner any plot, apartment or building, as the case may be, in any real estate project or part of it, in any planning area, without registering the real estate project with the real estate regulatory authority. All ongoing projects on the date of commencement of the Act and for which the completion certificate has not been issued, the promoter has to make an application to the authority for registration of the project.
If the authority thinks necessary, in the interest of allottees, for projects that are developed beyond the planning area but with the requisite permission of the local authority, it may, by order, direct the promoter of such projects to register with the authority, and the provisions of this Act or the rules and regulations made thereunder, shall apply to such projects from that stage of registration, stipulate the Section 3 of the Act.
Section 59 of the Rera Act lays down the punishment, if a promoter contravenes the provisions of Section 3. If proven, a promoter can face a penalty which may extend up to 10% of the estimated cost of the real estate project as the authority determines. Repeated violations are punishable with imprisonment up to three years or with fine which may extend up to a further 10% of the estimated cost of the real estate project, or with both.
Information for ongoing project registration
All ongoing projects that haven’t received the completion certificate are covered under Act. They have to submit additional information to the authority for project registration.
Original sanctions: The builder must submit the original sanctioned plan, layout plan and specifications and the subsequent modifications carried out, if any, including the existing sanctioned plan, layout plan and specifications with the authority.
Money collected: For protecting the buyer’s money already invested in the project, the builder must share and submit with the authority the total amount of money collected from the allottees. In addition to it, he must give details of the total amount of money used for developing the project, including the total amount of balance with him.
Possession schedule: Possession delays have become endemic to the housing sector. In case of an incomplete project, the builder must update the authority regarding the stage of development at the site. He must submit the status of the project (the extent of development carried out till date and the extent of development pending). He must also mention the original time period disclosed to the allottee for the completion of the project at the time of sale. The delay and the time period within which he undertakes to complete the pending project should also be mentioned. All this information shall be certified by an engineer, an architect and a chartered accountant.
Carpet area: The builder must also disclose the size of the apartment based on the carpet area even if earlier sold on any other basis such as super area, super built-up area, built-up area etc. that shall not affect the validity of the agreement entered into between the promoter and the allottee to that extent. In case of plotted development, the builder must disclose the area of the plot being sold to the allottees as per the layout plan.
Separate account: For the projects that are ongoing and have not received a completion certificate, the builder must, within three months of the application for registration of the project with the authority, “deposit in the separate bank account, 70% of the amounts already realised from the allottees, which have not been used for construction of the project or the land cost for the project”.
In case the builder fails to provide such information, his application is liable to be rejected by the state authority.
When registration for a project is rejected
“The rejection of application for project registration or cancellation or revocation or suspension of the project registration lead to the same situation. The same sections of the Act come into play,” says Himanshu Raj, a Chandigarh-based advocate.
The buyer has limited options in terms of action he can seek against the defaulting builder. He can seek damages against the builder. “If the registration of the developer under Rera is rejected or cancelled or revoked then it is advisable that the buyer should ask for the complete refund of his entire amount, including the damages and the compensation, under Sections 18(1)(b) and 19 (4) of Rera,” says Raj.
Section 18 (1) (b) stipulates, “If the promoter fails to complete or is unable to give possession of an apartment, plot or building due to discontinuance of his business as a developer on account of suspension or revocation of the registration under this Act or for any other reason, he shall be liable on demand to the allottees, in case the allottee wishes to withdraw from the project, without prejudice to any other remedy available, to return the amount received by him in respect of that apartment, plot, building, as the case may be, with interest at such rate as may be prescribed in this behalf including compensation in the manner as provided under this Act.”
As per the Section 19 (4) of the Act, “The allottee shall be entitled to claim the refund of amount paid along with interest at such rate as may be prescribed and compensation in the manner as provided under this Act, from the promoter, if the promoter fails to comply or is unable to give possession of the apartment, plot or building, as the case may be, in accordance with the terms of agreement for sale or due to discontinuance of his business as a developer on account of suspension or revocation of his registration under the provisions of this Act or the rules or regulations made thereunder.”
But if the buyer does not wish to get the refund of the amount then, “The buyer must rely on the decision of the authority for carrying out the remaining development of the property under Section 8 of Rera and keep receiving interest for every month of delay, till the handing over of the possession, at such rate as may be prescribed under section 18(1)(b) of the Rera,” says Raj.
8 builders diverted Rs 860 cr of flatbuyers’ money: YEIDA audit report
The Yamuna Expressway Industrial Development Authority (YEIDA) has claimed that eight real estate developers have allegedly diverted Rs 860 crore funds collected from home-buyers, a contention that is denied by most of the developers involved.
Following the instructions of Uttar Pradesh chief minister Yogi Adityanath on September 12, 2017, YEIDA chief executive officer Arun Vir Singh formed a committee headed by additional chief executive officer (ACEO) Amarnath Upadhyay to audit accounts of 28 real estate developers.
The committee has now submitted its audit report to the CEO in which it has named Sunworld Infrastructure limited, Oasis Realtech private limited, Supertech Group, Logix Group, Three C developers, SDS Infracon private limited, Green Bay Infrastructure private limited and ATS Realty private limited of diverting funds. The other 20 developers are in the clear although the committee says some of them owe YEIDA money.
“We have issued notices to these eight builders and directed them to open escrow accounts for their respective housing projects and deposit the diverted amount in the next 30 days or be ready to face criminal cases. The authority will file an FIR against each and send them to jail if needed,” said YEIDA CEO Singh.
Sunworld Infrastructure limited is accused of diverting R47.55 crore, Oasis Realtech private limited R8 crore, Supertech Group R262.82 crore, Logix Group R37.84 crore, Three C developers R27.93 crore, SDS Infracon private limited 182.44 crore, Green Bay Infrastructure private limited 173.10 crore and ATS Realty private limited R120.75 crore, according to YEIDA officials.
Five of eight developers termed the “audit methodology” followed by the authority as “faulty”.
The audit covered the 28 builders to which YEIDA had alloted land in 2010-11. Some of these builders have partially delivered their projects, but the majority of them are yet to deliver as the construction work is underway.
Getambar Anand, chairman and managing director, ATS Builders and president of confederation of real estate developers association of India (CREDAI), a realtors’ body, said: “ The work at our project is being finished as per schedule and we have not at all diverted any money of buyer. The audit report is one-sided and discouraging for the builders like us, who are delivering each project on time.”
The builders said that the audit report would tarnish the image of the builders and could delay the projects.
RK Arora, chairman and managing director of the Supertech Group, said: “Our team had explained to the committee that we have not diverted any money. We had taken a loan to finish the housing project on time and then paid interest on the loan amount back to the lender. The committee considered that repayment of interest as diversion. I am shocked.”
YEIDA said it had called the builders several times for meetings giving them opportunity to explain the diversion of funds.
“We have collected all details of these builders from them. We checked their balance sheets and expenditure that established that they have diverted funds of buyers. We need to safeguard buyers’ interest and act as per the orders of state government. If the builders feel the report is wrong then they can go to court or take legal course. Also, their allegation that the report is one-sided is false as the committee gave adequate opportunity to them for explaining the fund diversion,” said Singh .
One of the developers claimed it was YEIDA that owed it money.
According to Logix Group , YEIDA owes it R100 crore . Logix Group CMD Shakti Nath said: “I have already surrendered the group housing land because the authority failed to give me possession. If there is no group housing land with me then how can there be diversion. The YEIDA still needs to refund me more than R100 crore for the land, the possession of which wasn’t given to me .”
Another claimed it couldn’t have diverted the amount YEIDA claimed it had, although it admitted its project was delayed.
Sunworld Infrastructure limited director Sanjeev Gupta said: “We have collected only R23 crore from the home-buyers in our housing project then how can we divert R47.55 crore. We have not diverted any amount and we are asking buyers to shift to other projects because of the delay or take their money back.”
YEIDA is yet to provide facilities such as drinking water, roads, parks and offer possession of the group housing land properly, said the builders.
Sanjay Nagar, promoter of Oasis Realtech private limited said: “The committee is making baseless allegations because we have not diverted any money. We had explained to the committee how we used the money collected from buyers. Instead of providing water, roads and other facilities, (YEIDA) officials are involved in tarnishing the image of builders, who want to deliver flats.”
Executives at the three other developers named, Three C developers, SDS Infracon private limited and Green Bay Infrastructure private limited, couldn’t be reached for comment despite repeated attempts.
“Twenty builders did not divert funds collected from home-buyers. But we have issued notices to them too as they need to pay up land dues of the government. A total of 28 builders have failed to clear R3,514 crore land dues to the authority (government). We sent notices to all 28 builders directing them to either pay up or face action,” said Singh.
Saturday, February 17, 2018
Friday, February 16, 2018
India threatens Pierce Brosnan with fine over pan masala adverts
India threatens Pierce Brosnan with fine over pan masala adverts
Delhi health officials have threatened to fine or jail the actor Pierce Brosnan if he fails to explain why he appeared in adverts for a chewing mixture that sometimes includes tobacco.
Brosnan appeared nearly 18 months ago in TV and newspaper ads for a brand of pan masala, a popular Indian mixture that can contain tobacco, lime, spices and nuts.
The specific variety Brosnan was endorsing did not contain tobacco but some of the company’s products include supari, a kind of nut considered by the World Health Organisation to be carcinogenic.
The campaign was suspended after causing an uproar, and Brosnan said he was “deeply shocked and saddened” that his image had been used to promote a potentially harmful product.
On Monday the Delhi health department issued a show-cause notice to the Irish actor demanding he explain his appearance in the commercials, which it claims were a form of “surrogate advertisement” intended to evade a ban on promoting tobacco.
“We have issued the notice to Pierce Brosnan through the company, and also reached out to him via social media platforms,” SK Arora, a health official with the Delhi government, told the Indian Express.
“If he fails to respond to the notice, he would face punishment of a fine up to Rs5,000 [£56] or two years in prison.”
Pan masala products containing tobacco have been known to increase the risk of mouth and throat cancers. The red-tinted teeth of regular chewers are a common sight across India and red splotches of pan masala stain many Indian streets.
Brosnan said at the time of the controversy he was under the impression he was promoting a “breath freshener/tooth whitener [and] all-natural, containing neither tobacco, supari nor any other harmful ingredient”.
He said the company, Pan Bahar, had “grossly manipulated” the advertisements to suggest the star was endorsing its entire product line.
“Having endured, in my own personal life, the loss of my first wife and daughter as well as numerous friends to cancer, I am fully committed to supporting women’s healthcare and research programmes that improve human health and alleviate suffering,” Brosnan said.
Pan Bahar has denied it misled Brosnan and emphasised that its product is a mouth freshener that should not be associated with chewing tobacco.
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Mumbai: MahaRERA Fines Builder Rs 12 Lakh For Advertising Unregistered Projects
Taking serious cognisance of the complaints filed by the Mumbai Grahak Panchayat (MGP), state real estate regulator MahaRERA has slapped Rs 12 lakh penalty on Kabra and Associates for advertising unregistered projects.
In a recent order, the MahaRera has slapped a total penalty of Rs 12 lakh on the builder for violating sections 11 (2) and sections 12 and 14 of the Act. "The builder has violated various regulations of RERA law by advertising unregistered projects. Also, the builder had not advertised in compliance with the rules, which mandate the promoter to prominently display their MahaRERA registered the number and their website address in any ad," said MGP chairman Shirish Deshpande.
As per RERA regulations, once a project is registered, developers cannot make any changes in the proposal without taking consent of two-thirds of the home-buyers, which Kabra had violated while advertising one of his projects. "We brought this to the notice of MahaRERA, acting on which, a total penalty of R12 lakh has been slapped on the builder," Deshpande said.
He further said apart from Kabra, five other developers have also been slapped with a penalty of Rs 2 lakh each for violation of these sections. These builders include Goodtimes, Lashkaria Housing, Rikki Ronie, Ashar Realtors and Puraniks.
1.Kellogg’s India Pvt Ltd (Kellogg’s Oats is false as it is not applicable for the serving size of the product
The advertisement’s claim, “It is high in protein and fibre” is false as it is not applicable for the serving size of the product and, in the context of a product positioned for weight management, it is misleading by ambiguity.
Also the claim, “Foods high in protein and fibre make you feel full and keep hunger pangs away” – Since this claim is linked to the claim of the product being high in protein and fibre, it is also misleading due to the reasons mentioned above.
Furthermore, the claim was also inadequately substantiated for the specific product being advertised. The claim, “To manage weight eat a breakfast like Kellogg’s Special K”, was considered to be misleading by ambiguity and implication. The visual of the celebrity when seen in conjunction with the claims is likely to mislead consumers regarding the product efficacy as the advertiser was not able to submit any evidence that the celebrity is in agreement with the claims being made in the advertisement in general, and where she claims this to be her experience in particular. This contravenes the Guidelines for Celebrities in Advertising.
Also, the disclaimers in the advertisement were not legible. The heights of the picture area was 386 lines for SD and 1090 for HD. The lowercase elements were measured to be of height of about 7-8 pixels or less for SD and 18-19 pixels for HD formats. The SD clip (provided by the complainant) does not comply whereas the HD clip (provided by the advertiser) does comply with the ASCI Guidelines for Disclaimers Clauses (VII) (i) (1) of ASCI Guidelines for Disclaimers (“For standard definition images, the height of the text lower case elements shall be not less than 12 pixels (12 pixels lines) in a 576 line raster.”) for SD version of the advertisement.
While the advertiser declares the protein and fibre content per serve size on the product package to enable consumer make an informed decision, such serve specific reference is missing from the TV advertisement. The claim “High Protein”, “High Fibre” does not qualify per serve basis – more so when only one serve of the product is likely to be consumed by a consumer within a day as the product is a “breakfast option”. The claim, “It is high in protein and fibre”, is false as it is not applicable for the serving size of the product and in the context of a product positioned for weight management, it is misleading by ambiguity. The stand-alone claim of “Foods high in protein and fibre make you feel full and keep hunger pangs away” is not objectionable. But when seen in conjunction with “High Protein” “High fibre”, the claim based on 100 gm of product is misleading by implication. While “eating breakfast regularly” as a generic advice for weight management was considered acceptable, the CCC did not consider the claim statement implying “regular breakfast” with the advertised product for weight management to be adequately substantiated. The claim, “To manage weight eat a breakfast like Kellogg’s Special K”, was considered to be misleading by ambiguity and implication. The advertiser provided details of the e:mail correspondence regarding the endorsement statements as agreed by the celebrity (Deepika Padukone) i.e. “Mere jaise, weight manage karne ke liye, eat breakfast every day”, “Stay healthy and eat breakfast every day”. It was noted that the celebrity has not used the product name in her approved statements and that the advertiser is required to be consistent with the celebrity endorsed statements in the advertisement. The disclaimers were not in accordance with the ASCI guidelines.
Thursday, February 15, 2018
तो इस कारण किसानों को नहीं मिलता फसल बीमा का लाभ
बैंक,बीमा कम्पनी तथा किसान के बीच क्या है सम्बन्ध ?
प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के 2 वर्ष से ज्यादा हो गये है लेकिन आज भी किसानों के बीच गलतफहमी बनी हुई है | इस कारण किसान अपनी फसल का बीमा कराने तथा बीमा को पाने में दिक्कतों का सामना करना पढ़ता है अक्सर किसान बीमे की लडाई बैंक से करने लगते हैं | इस बारे में किसान समाधान आप के लिए बैंक, बीमा कम्पनी तथा किसान के बीच का सम्बन्ध है यह बतायेगा |
फसल बीमा में बैंक का क्या भूमिका है ?
बैंक बीमा कम्पनी का एक एजेंट की तरह है | जिसका कम यह है की बीमा कम्पनी के लिए बैंक किसानों के फसलों का बीमा करा सके | इसको इस प्रकार भी समझ सकते हैं A नाम का किसान B नाम के बैंक में बीमा कराने जाता है या बैंक से KCC से कृषि कर्ज लेता है तो बैक B उस किसान का कुल कर्ज का 2% काट लेगा | तथा यह पैसा C नाम की बीमा कम्पनी को दे देगा और आप को एक फार्म भर कर देगा जिसमें लिखा रहेगा की आप का बीमा किस कम्पनी ने किया है | तथा आपके फसल बीमा की अवधि क्या रहेगा | बीमा कितने का है | बैंक आप का 2 % तभी कटेगा जब आप कृषि कर्ज खरीफ फसल के लिया है | अगर आप कृषि कर्ज रबी फसल के लिए लिए हैं तो आप का कृषि कर्ज का 1.5% कटेगा तथा बागवानी फसल के लिए 5% कटेगा | यह पैसा C नाम के बीमा कम्पनी को दे देगा |
बैंक B आप को अगर बीमा का प्रमाण पत्र दे देता है तो आप का बैंक से फिर कोई कम नहीं रह जाता है | बैंक का कम सिर्फ इतना ही है | इसके बाद आपको सिर्फ बीमा कम्पनी C से कम रहता है |
बीमा में पटवारी का क्या भूमिका है ?
किसान भाई अगर आप ने बैंक से बीमा का प्रमाण पत्र हासिल कर लिया है तो अब आप का बैंक से कोई मतलब नहीं रह जाता है | लेकिन बैंक बीमा का प्रमाणपत्र नहीं देता है तो आप बैंक से मांगे नहीं देने पर प्रत्येक बैंक में एक बीमा अधिकारी रहता है उससे सम्पर्क करें |इसके बाद जिस फसल के लिए फसल बीमा लिया है उस फसल का बोनी प्रमाण पात्र लेना होगा | इसके लिए आप के भूमि पर पटवारी आकर आप के फसल को देखेगा | तथा आप को बोनी प्रमाण पत्र देगा | अगर पटवारी आप को बोनी प्रमाण पत्र नहीं देता है तो किसान अपना बोनी प्रमाण पत्र के लिए पटवारी से सम्पर्क करें | पटवारी के खेत पर नहीं आने पर किसान अपने तहसील के तसीलदार या अनुभागिय अधिकारी से शिकायत करें | अगर आप ने पटवारी से बोनी प्रमाण पत्र नहीं लिया है तो आप का फसल बीमा में यह माना जा सकता है की आपने कोई फसल बोया ही नहीं हैं |
बीमा कम्पनी और किसान के बीच का सम्बन्ध क्या है ?
किसानों को बैंक से बीमा का प्रमाण पत्र मिल जाने के बाद, पटवारी से बोनी प्रमाण पत्र मिल जाने के बाद अब किसान और बीमा कम्पनी के बीच का सम्बन्ध रह जाता है | अगर आप की फसल खराब हो गयी है तो इसकी शिकायत बीमा कम्पनी के पास करें तथा अपने तहसील के SDM के पास करें | तथा बीमा का लाभ लें
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