Saturday, December 30, 2017

खरीदारी के समय खरीदार के साथ होने वाले धोखे को रोकने के लिए सरकार एक नया कानून बना रही है,

खरीदारी के समय खरीदार के साथ होने वाले धोखे को रोकने के लिए सरकार एक नया कानून बना रही है, जिसके तहत प्रॉडक्ट के बारे में एमआरपी, एक्सपायरी डेट, मैन्युफैक्चरर की डिटेल्स सहित कई डीटेल्स की जानकारी देना अनिवार्य किया गया है।

ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म्स पर सामान बेचने वालों को दूसरी डीटेल्स के अलावा प्रॉडक्ट की ओरिजनिल एमआरपी की जानकारी भी देनी होगी, भले ही वे उसे डिस्काउंटेड प्राइस पर बेच रहे हों।

जब से ऑनलाइन शॉपिंग कराने वाले प्लेटफॉर्म आ गए हैं, शहरी जनता ने तो मार्केट जाने का रास्ता ही छोड़ दिया है। आज बाजार से काफी कम दाम पर सामान मिलने की वजह से ऑनलाइन शॉपिंग का चलन अपनी चरम सीमा पर है। लेकिन इसमें मुश्किलें और दुविधाएं भी कम नहीं हैं। कई बार ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर सामान बेचने वालों की तरफ से भ्रामक जानकारी या अधूरी जानकारी देने की वजह से ग्राहकों को मुश्किल का सामना करना पड़ता है। सामान लेने के बाद उन्हें लगता है कि उनके साथ को धोखा हो गया है। कई बार प्रॉडक्ट पर एमआरपी तक नहीं लिखा होता। इसे रोकने के लिए सरकार एक नया कानून बना रही है।
लीगल मेट्रोलॉजी (पैकेज्ड कमोडिटीज) (अमेंडमेंट) रूल्स 2017 का मकसद प्री-पैकेज्ड कमोडिटीज को रेगुलेट करना है। इसके तहत प्रॉडक्ट के बारे में एमआरपी, एक्सपायरी डेट, मैन्युफैक्चरर की डिटेल्स सहित कई डीटेल्स की जानकारी देना अनिवार्य किया गया है। ई-कॉमर्स इकाइयों के खिलाफ उपभोक्ताओं की बढ़ती शिकायतों को देखते हुए उन्हें भी इन नए नियमों के दायरे में लाया गया है। ई-कॉमर्स कंपनियां अगर अधिकतम विक्रय मूल्य (MRP) का जिक्र प्रॉडक्ट्स की पैकिंग पर साफ तौर पर करने से जुड़े नए नियमों का पालन नहीं करेंगी तो उन्हें जुर्माना देना होगा और यहां तक कि जेल की सजा भुगतनी पड़ सकती है।
ये नए नियम अगले साल पहली जनवरी से लागू होंगे। कंज्यूमर अफेयर्स डिपार्टमेंट के एक सीनियर अधिकारी ने कहा, 'अगर ई-कॉमर्स कंपनियां नए नियमों का पालन नहीं करेंगी तो उन्हें लीगल मेट्रोलॉजी एक्ट के सेक्शन 36 के तहत दंड दिया जाएगा।' इस एक्ट के अनुसार, प्री-पैकेज्ड कमोडिटीज से जुड़ी अनिवार्य जानकारी न देने वाली ई-कॉमर्स इकाइयों पर पहली गलती के लिए 25000 रुपये का जुर्माना लगाया जाएगा। ऐसी दूसरी गलती के लिए उन पर 50000 रुपये का जुर्माना लगेगा और तीसरी के लिए एक लाख रुपये का। अधिकारी ने कहा कि अपराध की गंभीरता को देखते हुए ऐसे जुर्माने के अलावा एक साल तक की जेल की सजा भी हो सकती है।
ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म्स पर सामान बेचने वालों को दूसरी डीटेल्स के अलावा प्रॉडक्ट की ओरिजनिल एमआरपी की जानकारी भी देनी होगी, भले ही वे उसे डिस्काउंटेड प्राइस पर बेच रहे हों। इसके अलावा एक्सपायरी डेट की जानकारी भी देनी होगी। यह भी बताना होगा कि प्रॉडक्ट को किस देश में बनाया गया। कंज्यूमर एंगेजमेंट प्लेटफॉर्म लोकल सर्कल्स की ओर से कराए गए एक सर्वे में पाया गया कि 42 पर्सेंट कंज्यूमर्स ने यह देखा है कि सेलर्स अपने प्रॉडक्ट्स की लिस्टिंग उनके एमआरपी से ज्यादा पर कराते हैं और फिर उसके बाद वे उस पर डिस्काउंट ऑफर करते हैं।
हाल ही में कंज्यूमर अफेयर्स, फूड एंड पब्लिक डिस्ट्रीब्यूशन मिनिस्टर रामविलास पासवान ने कहा था कि ई-कॉमर्स कंपनियों को नए नियमों का पालन करना होगा। उन्हें डिस्काउंट देने की तो छूट होगी लेकिन कंज्यूमर्स के सामने स्पष्ट रूप से तमाम जानकारियां देनी होंगी ताकि वे प्रॉडक्ट के बारे में सही निर्णय कर सकें।
इस विभाग से जुड़े एक अधिकारी ने बताया, 'पिछले दो वर्षों में ई-कॉमर्स कंपनियों के खिलाफ कई शिकायतें आई हैं। प्री-पैकेज्ड कमोडिटीज से जुड़ा नया नियम इन इकाइयों के कामकाज को कहीं ज्यादा सख्ती के साथ रेगुलेट करेगा। मकसद यह है कि ऑनलाइन और ऑफलाइन कामकाज करने वाले सेलर्स के बीच समानता लाई जाए।' संशोधित लीगल मेट्रोलॉजी रूल्स के तहत एक अहम बदलाव एक ही प्री-पैकेज्ड प्रॉडक्ट के लिए दो एमआरपी रखने पर बैन लगाने के रूप में भी किया गया है।

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किसानों की सुविधा के लिए लांच हुआ मृदा स्वास्थ्य कार्ड एप...

केन्द्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री,  राधा मोहन सिंह ने विश्व मृदा दिवस के अवसर पर कहा है कि स्वायल हेल्थ कार्ड योजना का उद्देश्य देश के सभी किसानों की 12 करोड़ जोतों के सॉयल हेल्थ के विषय में जानकारी प्रदान करना है। सिंह ने यह बात कृषि विज्ञान केन्द्र, झज्जर में विश्व मृदा दिवस के अवसर पर कही। उल्लेखनीय है कि हर वर्ष 5 दिसम्बर को विश्व मृदा दिवस मनाया जाता है। भारत में मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना की शुरुआत फरवरी, 2015 में राजस्थान में की गई थी।
केन्द्रीय कृषि मंत्री ने जानकारी दी कि किसानों की मदद के लिए आज मृदा स्वास्थ्य कार्ड एप लांच किया गया। इस ऐप से क्षेत्र स्तर के कार्यकर्ताओं को लाभ होगा। नमूना संग्रह के समय फील्ड से नमूना पंजीकरण विवरण कैप्चर करने में यह मोबाइल ऐप स्वचालित रूप से जीआईएस समन्वय को कैप्चर करता है और उस स्थान को इंगित करता है जहां से क्षेत्र के कार्यकर्ताओं द्वारा मिटटी का नमूना लिया जाता है। यह ऐप राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के लिए विकसित अन्य जियोटैंगिग ऐप की तरह काम करता है। ऐप में किसानों के नाम, आधार कार्ड नंबर, मोबाइल नंबर, लिंग, पता, फसल विवरण आदि दर्ज होता है।

राधा मोहन सिंह ने कहा कि सॉयल हेल्थ कार्ड किसानों को मिट्टी की पोषक तत्व संबंधित स्थिति के बारे में जानकारी प्रदान करता है और साथ ही मिट्टी के स्वास्थ्य व उर्वरता में सुधार करने के लिए उचित मात्रा में उपयोग किए जाने वाले पोषक तत्वों की सलाह देता है। हर दो साल में मिट्टी की स्थिति का आकलन किया जाता है ताकि पोषक तत्वों की कमी का पता लगाया जा सके और सुधार किया जा सके। सिंह ने कहा कि असंतुलित उर्वरकों के प्रयोग के कारण भी खेत की मिटटी खराब हो जाती है और इसकी उत्पादन क्षमता कम होने लगती है। केन्द्रीय कृषि मंत्री ने इस मौके पर जानकारी दी कि प्रथम चरण (2015 से 2017) में अभी तक 10 करोड़ स्वायल हेल्थ कार्ड वितरित किए गए हैं। कृषि मंत्रालय का लक्ष्य दिसंबर, 2017 के अंत तक सभी 12 करोड़ किसानों को स्वायल हेल्थ कार्ड प्रदान करना है। इस योजना का दूसरा चरण, 1 मई 2017 से शुरु हुआ और वर्ष 2017 से 2019 के लिए है। उन्होंने कहा कि प्रति दो वर्ष के बाद नवीकरण के काम का यह सिलसिला चलता रहेगा।

केन्द्रीय कृषि मंत्री ने कहा कि स्वायल हेल्थ कार्ड की प्रमुख विशेषताओं में नमूने एकत्र करने एवं प्रयोगशाला में परीक्षण के लिए एक समान दृष्टिकोण अपनाना, देश में सारी भूमि को कवर करना और हर दो वर्ष में स्वायल हेल्थ कार्ड जारी करना शामिल हैं। यह योजना राज्य सरकारों के सहयोग से चल रही है। मिट्टी में होने वाले परिवर्तनों को मॉनिटर करने और इनकी तुलना पिछले वर्षों से करने के लिए एक पद्धतिबद्ध डाटाबेस तैयार करने वास्ते जीपीएस आधारित मिट्टी नमूना संग्रहण को अनिवार्य कर दिया गया है। सिंह ने आगे बताया कि नमूनों के ऑनलाइन पंजीकरण और परीक्षण परिणामों को सॉयल हेल्थ कार्ड के राष्ट्रीय पोर्टल पर अपलोड किया जाता है। परीक्षण के परिणामों के आधार पर इस सिस्टम द्वारा स्वतः ही सिफारिशों की गणना की जाती है।

राधा मोहन सिंह ने कहा कि स्वायल हेल्थ कार्ड 14 स्थानीय भाषाओं में तैयार किया जाता है और किसानों को वितरित किया जाता है। उन्होंने इस बात पर खुशी जताई कि स्थानीय बोली में सॉयल हेल्थ कार्ड तैयार करने का काम शुरू हो चुका है। अब सॉयल हेल्थ कार्ड कुमाऊनी, गढ़वाली, खासी, गारो जैसी- स्थानीय बोलियों में भी तैयार किए जा सकते हैं। सिंह ने कहा कि कार्ड में दी गई सलाह के अनुसार किसानों को अपने खेतों में पोषक तत्वों का उपयोग करना चाहिए। इससे खेती की लागत में कमी आएगी, उत्पादन और किसानों की आय में वृद्धि होगी।

सिंह ने जानकारी दी कि स्वायल हेल्थ कार्ड पोर्टल को अब समेकित उर्वरक प्रबंधन सिस्टम (आई-एफएमएस) से जोड़ दिया गया है और सॉयल हेल्थ कार्ड सिफारिश के अनुसार उर्वरकों के वितरण का कार्य पॉयलेट आधार पर 16 जिलों में शुरू कर दिया गया है। यहां उल्लेखनीय है कि विश्व मृदा दिवस पर सॉयल हेल्थ के बारे में जागरूकता उत्प्न्न करने के लिए राज्य स्तर पर सभी जिलों में कार्यक्रमों का आयोजन किया जा रहा है। हरियाणा में मृदा स्वास्थ्य कार्ड की प्रगति के बारे में केन्द्रीय कृषि मंत्री ने बताया कि प्रथम चरण में 43.6 लाख किसानों को मृदा स्वास्थ्य कार्ड प्रदान करना था जिसके तहत 28.92 लाख किसानों को मृदा स्वास्थ्य कार्ड वितरित किया जा चुका है। शेष कार्ड वितरित किये जा रहे हैं। सॉयल हेल्थ कार्ड स्कीम के प्रचार – प्रसार के लिए विभिन्न कार्यों का आयोजन राज्य सरकारों और आईसीएआर, इसके संस्थानों और कृषि विज्ञान केंद्रों द्वारा किया जा रहा है।

"चारा घोटाला" शब्द की उत्पत्ति नहीं हुई थी। परंतु घोटाले के बाहर आने का "बीजारोपण" हो चुका था

राँची के एयरपोर्ट पर एक चार्टर्ड विमान में से कुछ बंडल्स उतारे जा रहे थे ... पता चला , उन बंडलों में शादी के कार्ड्स हैं जिन्हें मुंबई से स्पेशली विमान द्वारा मंगवाया गया था ।
राँची में ही पोस्टेड एक वेटनरी डॉक्टर के. एम. प्रसाद की बेटी की शादी तय हो चुकी थी , और इसी शादी के लिए इन महंगे कार्ड्स को मुंबई से राँची मंगाया गया था।
यह बात 1995 की है जब संयुक्त बिहार के मुख्यमंत्री लालू यादव एवं विपक्ष के नेता डा. जगन्नाथ मिश्र थे।
ऐसी शानदार शादी राँची के लोग कभी नहीं देखे थे ... उस वक्त के अनुमान के हिसाब से इस शादी में 20 करोड़ रुपए खर्च हुए थे।
मेहमानों की यदि बात करें तो मुख्यमंत्री , विधानसभा में विपक्ष के नेता , सैकड़ों छोटे-बड़े नेता , अधिकारी , व्यवसायी...जो दिल्ली मुंबई आदि जगहों से आए थे , या यूँ कहिए कि पधारे थे , वे इस समारोह में चार चाँद लगा चुके थे।
शहर के अखबारों में इस शादी की तस्वीरें और गाॅसिप्स तो कई दिनों तक छपते रहे थे।
उस समय तक "चारा घोटाला" शब्द की उत्पत्ति नहीं हुई थी।
परंतु घोटाले के बाहर आने का "बीजारोपण" हो चुका था ।
इसी हाई प्रोफाइल शादी के चर्चों के बीच ये बात भी उठने लगी कि आखिर एक पशुपालक अधिकारी के पास इतना पैसा कहाँ से आया ?
पशु पालन घोटाले की कहानी तीन मास्टर माइंड से शुरू होती है जिनके नाम थे , डा. श्याम बिहारी प्रसाद (ज्वाइंट डायरेक्टर) , के. एम. प्रसाद और त्रिपुरारी प्रसाद ।
ये तीनों लोग सिर्फ अधिकारी या सरकारी नौकर ही नहीं थे बल्कि इन्हें माफिया भी कह सकते हैं। सरकार चाहे लालू की हो या जगन्नाथ मिश्र की .. इनकी तूती के सामने सभी मशीनरी नतमस्तक थीं।
सरकारी कोषागार के अफसरों को ये बात पता थी कि इनकी बात नहीं मानने की सूरत में उनका ट्रांस्फ़र किसी बीहड़ में हो सकता है ...या नौकरी जा सकती है , इसलिए वे भी इस इनके गुट में शामिल हो गए थे और पूजा का प्रसाद भी पाने लगे थे।
श्याम बिहारी प्रसाद की लालू यादव से नजदीकी की यदि बात करें तो जब लालू विधायक नहीं बने थे , यानी जब सिर्फ नेता थे , तब वे श्याम बिहारी प्रसाद के घर पर रहा करते थे , लालू के खर्च भी डाक्टर साहब ही वहन करते थे।
जब लालू विधायक के बाद मुख्यमंत्री बने , श्याम बिहारी प्रसाद की तो लाॅटरी ही लग गई ।
राजकीय कोषागार की लूट अंधाधुँध होती रही .. नीचे से लेकर उपर तक सभी लोगों तक पैसे पहुँचते रहे .. लालू यादव देखते देखते अमीर तो बने ही इस निकासी के पैसे से वे तमाम छोटे बड़े अधिकारी और नेता (जिन्हें लूट का हिस्सा देना जरूरी था) वे अमीर बनते गए।
यहाँ तक कि नीतिश कुमार और सुबोध कांत सहाय जैसे नेताओं को भी कुछ पैसे मिले थे , जो सीधे तरीके से ना होकर चंदे के रूप में मिले।
चाईबासा के तात्कालिन जिलाधिकारी अमित खरे ने एक बार कुछ सवाल उठाए तो उन्हें धमकी देकर चुप करा दिया गया था , जान किसे प्यारी नहीं होती ? ... बेचारे चुप हो गए।
इस माफिया ग्रुप की ताकत इतनी थी कि शासन प्रशासन.. या किसी और की तो हिम्मत भी नहीं थी कि इनके कामों में कोई बाधा डाले.. या चूँ भी करे ।
पशु पालन घोटाले में शामिल लोग अपनी अमीरी का नंगा नाच किया करते थे ..... 950 करोड़ रुपए कम नहीं होते हैं साहब !! वो भी आज से लगभग पच्चीस साल पहले की वैल्यू कुछ और थी।
डा. श्याम बिहारी के घर पर बड़े बड़े लोग सिर झुकाने आया करते थे। लूट के पैसे मुंबई फिल्मी बाज़ार तक भी पहुँचने लगे थे।
एक बार श्याम बिहारी के घर पर एक आयोजन हुआ था जिसमें मुंबई की एक हिरोइन नाचने के लिए आई थी .. उस प्रोग्राम में लालू यादव सहित बिहार के कुछ गण मान्य लोग भी शामिल थे।
इस आयोजन का जब खुलासा हुआ और बातें फैलने लगी ... जिस जहाज में वो आई थी उसका विवरण सामने आया , तो कहा गया था कि वो हिरोइन अपने निजी काम से राँची आई हुई थी .... बात को दबाने का भरपूर प्रयास किया गया।
धीरे धीरे सरकारी कोष की लूट वाली बात छिटपुट सामने आने लगी , शक और गहराता गया .... और जब ये पता चला कि इस घोटाले के केंद्र में लालू यादव हैं जो उन तीनों मास्टरमाइंड के बाॅस हैं ...जो उस वक्त बिहार के मुख्यमंत्री थे ..या यूँ कहें कि बिहार के सबसे बड़े माफिया थे जो अपनी छवि गरीबों और पिछड़ों के नेता के तौर पर स्थापित कर चुके थे ... तो लोगों को हैरानी ही नहीं हुई बल्कि यकीन भी नहीं हुआ था।
विपक्ष में बैठी बीजेपी को मुद्दा मिला और बीजेपी के कार्यकर्ता लालू के विरोध में सड़कों पर उतर आए।
कुछ ऐसे भी नेता जो लालू की पार्टी के थे और जिन्हें माल नहीं मिलता था , वे भी बीजेपी के साथ विरोध में शामिल हो गए।
शुरू शुरू में लालू यादव ने विपक्ष के इस विरोध को गरीबों , दलितों - कुचलों के महानायक के उपर हमला बता कर इसे राजनीतिक द्वेष करार दिया ... अगड़ी जातियों द्वारा एक गरीब एवं पिछड़े नेता पर हमले के रूप में प्रस्तुत किया ... और कहा कि मुझे फँसाया जा रहा है।
विरोध बढ़ता देख ... मामलों को गंभीर मानते हुए , भ्रष्टाचार का बू आता देख... पटना हाईकोर्ट ने लालू के कारनामों की जाँच के लिए सीबीआई जांच का आदेश दे दिया और जाँच शुरू हो गई।
सीबीआई जांच की जिम्मेदारी एक काबिल और ईमानदार जाँच अधिकारी यू. एन. विश्वास के हाथों में आ गई।
लालू यादव अब घिरने लगे थे , उनके समर्थक उग्र होने लगे थे ... उनके लोगों की गुंडागर्दी चरम पर पहुंच चुकी थी। सत्ता जाने का खतरा मंडराने लगा था।
पटना की सड़कों पर लालू यादव के गुंडे सरेआम हथियार लहराकर जुलूस निकालने लगे थे ..उन्होंने धमकी दी थी कि यदि लालू यादव को किसी ने हाथ भी लगाया तो पटना सहित राज्य भर में ऐसा उपद्रव होगा , ऐसी आग लगेगी कि लोग हैरान रह जाएँगे। .. आम जनता दहशत में आ चुकी थी , अराजकता अब चरम पर थी।
सीबीआई के अधिकारी जो जाँच कर रहे थे ,उन पर हमले करवाए गए ... यू.एन. विश्वास जो जाँच प्रमुख थे उन पर जानलेवा हमला किया गया जिसमें वे बच गए ...
परंतु उन्होंने निडरता एवं बहादुरी से जाँच को जारी रखा।
पटना हाईकोर्ट में याचिका डालने वाले लोगों को जान से मारने की धमकी दी गई। अखबारों में घोटाले की खबरें छापने वाले अखबारों के मालिकों एवं पत्रकारों को सरेआम मर्डर करने की धमकी दी जाने लगी।
समूचा बिहार जंगल राज में तब्दील हो चुका था...
लालू प्रसाद इस खुशफहमी में थे कि इनकी सत्ता और समर्थकों की शक्ति के सामने सीबीआई डर जाएगी , कोर्ट को झुकना पड़ेगा ...लेकिन हाईकोर्ट की निगरानी में सीबीआई की जाँच चलती रही ।
इस जाँच को रूकवाने के लिए लालू प्रसाद सुप्रीम कोर्ट भी गए थे पर निराशा हाथ लगी।
अब समय आया इन्हें गिरफ्तार करने का ... लेकिन बिहार की पुलिस ने लालू प्रसाद को गिरफ्तार करने से मना कर दिया।
बिहार पुलिस के मना करने पर यू. एन. विश्वास ने अब केन्द्र से सेना भेजने की माँग कर डाली पर माँग स्वीकार नहीं हुई , इस पर राजनीति भी बहुत हुई थी।
अंततः लालू प्रसाद ने खुद को घिरता देख अपने आप को सीबीआई कोर्ट के सामने आत्मसमर्पण कर दिया।
इसके पहले लालू अपनी पत्नी राबड़ी देवी को मुख्यमंत्री बनवा चुके थे .. उस महिला को जिसे बोलना तक नहीं आता था।
सैकड़ों लोगों को इस घोटाले में नामजद किया गया, गिरफ्तारी हुई और जेल गए।
डा. श्याम बिहारी प्रसाद का तो बुरा हश्र हुआ..कानूनी सजा से पहले ही वे सजा पा गए जब जेल में बंद रहने के दौरान किडनी की बीमारी की वजह से वे मर गए और नर्क में चले गए।
अबकी बार लालू प्रसाद यादव सातवीं बार जेल गए हैं।
इस घोटाले से पहले लालू प्रसाद की छवि एक ऐसे जन नेता की थी ..जो गरीबों और पिछड़ों का मसीहा था.. गरीबी में पला बढ़ा , भैंस की पीठ पर बैठकर भैसों को चराने का दावा करने वाला ..जो आगे चलकर एक लोकप्रिय और महत्वाकांक्षी नेता बना .... लेकिन पैसों की भूख ने उससे हर वो काम करवाया जो कानून संगत नहीं था।
भ्रष्टाचार में आकंठ डूब कर गरीबों का मसीहा देश का ऐसा पहला राजनीतिज्ञ बन गया जिसे कानून ने चुनाव लड़ने के योग्य भी नहीं माना।
यह दुर्भाग्य है देश का ... दुर्भाग्य है बिहार के लोगों का , दुर्भाग्य है उस राज्य का जहाँ की जनता ने एक ऐसे नेता को मुख्यमंत्री बनाया जिसकी सरपरस्ती में दो दशकों से अधिक समय तक राज्य में जंगल राज रहा ... जिसका शासक एक भ्रष्टाचारी था , जिसके अधिकारी भ्रष्ट थे , जिसकी पुलिस भ्रष्ट थी।
छले गए वे गरीब और आम लोग जिन्होंने लालू प्रसाद को अपना मसीहा माना था।
संजय दुबे
27/12/17

Friday, December 29, 2017

Demand for Uniform Maintenance Code

Demand for Uniform Maintenance Code
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Ravi Shankar Prasad: Dear Sir , Given your concern about reducing judicialburden you know that every matrimonial case in India has at least 3 to 4 independent cases running only for extracting maintenance from the husband ? Before uniform civil code we need a "Uniform Maintenance Code" to reduce the sheer volume of cases.
Why do we have 4 separate laws for paying maintenance to women. ?
a. DV Act 2005 ( Interim and Permanent Maintenance)
b. CrPC 125 ( Interim Maintenance )
c. HMA 24 ( Interim Maintenance )
d. HMA 25 ( permanent Alimony)
e. Arm twisting husbands to pay against bail proceedings in
a false 498a.
2. If paying maintenance is the ultimate goal why does India spend thousands of cores on women's education. The outcome of this massive investment seems to be not in a reduction but an increase in maintenance cases. Does law ministry have an explanation for this ?
2. Maintenance cannot be tax free and has to be taxed at hands of the receiver. Women demand and receive lakhs/crores of rupees and not pay a dime in taxes.
3. Make divorce less lucrative for women or the Hindu family system as we know it will be finished in a generation or two.

क्या आप जानना चाहते हैं की बैंक किसानों से ब्याज किस तरह लेता है |

क्या आप जानना चाहते हैं की बैंक किसानों से ब्याज किस तरह लेता है |

देश के सभी राज्यों किसान कृषि कार्य के लिए लोन लेते है , यह लोन वार्षिक , अर्धवार्षिक या फसल के अनुसार लेते है | जिसे सरकारी या राष्ट्रीय बैक किसान को लोन देता है | लेकिन ज्यादा तर किसान को यह मालूम नहीं है की लोन पर ब्याज किस आधार पर लिया जाता है | आज आप सभी किसान भाई को लोन और उस पर ब्याज के बारे में पूरी जानकारी दिया जायेगा |
मान लेते है की देश के किसी भी राज्य के कोई भी किसान किसान क्रेडिट कार्ड से 5 लाख रूपये का कर्ज किसी भी राष्ट्रीय बैंक से लेता है | तो अब यह जानना होगा की वह किसान एक साल में कितना रुपया बैंक को लौटना पड़ेगा | इस पर किसान को दो तरह का ब्याज लगेगा | एक 3 लाख रूपये तक के लोन पर 7 प्रतिशत तथा 2 लाख लोन पर 9 प्रतिशत का ब्याज लगेगा | अगर वह किसान जिस तारीख से लोन लिया है अगर उसी तारीख को लोन वापस कर देता है तो 3 लाख रूपये पर 3 प्रतिशत का सब्सिडी मिलेगा | बाकि 2 लाख रूपये पर 9 प्रतिशत का ही ब्याज लगेगा |
अब यह जानना होगा की किसान को एक साल में कितना रुपया बैंक को वापस करना होगा | जैसा की ऊपर बताया की एक साल में लौटने पर 3 लाख रूपये पर 3 प्रतिशत का सब्सिडी मिलेगा | इसका मतलब यह हुआ की 3 लाख रूपये पर 4 प्रतिशत का ब्याज लगेगा | 12000 रुपया 3 लाख पर एक साल का ब्याज होगा | बचे हुए 2 लाख पर 9 प्रतिशत का ब्याज लगेगा | 18000 रुपया 2 लाख रूपये का ब्याज होगा | कुल एक साल में किसान को ब्याज सहित रुपया होगा

(3 लाख लोन + 12000 ब्याज ) + (2 लाख लोन + 18000 ब्याज ) = 5 लाख 30 हजार रुपया |

इसके बाद केंद्र सरकार ने 2016 में प्रधानमंत्री फसल बीमा लागू किया था , जिसमें यह नियम है की देश के कोई भी किसान अगर किसान क्रेडिट कार्ड या किसी और माध्यम से भी फसल के लिए कर्ज लेता है तो लिए हुए कर्ज का 2 प्रतिशत प्रधान मंत्री फसल बीमा के लिए काटा जायेगा |
इसका मतलब यह हुआ की किसान ने 5 लाख रूपये का कर्ज लिया था तो उसका राशि का 2 प्रतिशत काट लिया जायेगा | 5 लाख रूपये का 2 प्रतिशत 10,000 रुपया होता है | इसमें आप को ध्यान देने वाली बात यह है की किसान लोन तो 5 लाख रूपये का लेगा लेकिन उसे 2 प्रतिशत काट कर 4 लाख 90,000 रुपया ही मिलेगा | लेकिन ब्याज 5 लाख रूपये पर लगेगा |तो किसान को एक साल में 5 लाख रूपये लोन लेने पर 4 लाख 90,000 रुपया मिलेगा और 5 लाख 30,000 रुपया एक साल में लौटान पड़ेगा |
अब यह जानते है की किसान ने किसी कारण से एक साल में बैंक को पैसा नहीं लौटा पाया तो किसान पर कितना कर्ज रहेगा |
अगर किसान 5 लाख रुपया लेकर किसी कारण से एक साल में कर्ज नहीं लौटा पाया तो किसान को मिलने वाला 3 प्रतिशत की सब्सिडी नहीं मिलेगी | इसका मतलब यह हुआ की 3 लाख पर 7 प्रतिशत का ही ब्याज चलेगा | किसान जितना देर करेगा किसान पर बोझ उतना ही बढेगा |
यह योजना पिछले 10 साल से लागू है प्रतेक साल मार्च महीने में इसकी समय पूरा हो जाता है , सरकार प्रतेक साल इस योजना को अगले साल के लिए बढ़ा देती है | इस वर्ष देर से लेकिन 14 जून को इस योजना को वर्ष 2017 – 18 के लिए लागू किया गया है | इसके लिए केंद्र सरकार 20339 कड़ोर रुपया स्वीकृत किया है | जिसका आप लोग लाभ उठा सकते है |
अब आप सभी किसान भाई अगर कर्ज लिए हैं या लेने के बारे में सोच रहे हैं तो अपनी कर्ज पर लगने वाला ब्याज को आप इस नियम से जोड़ सकते है |
किसान समाधान ने अपने तरफ से आप लोगों के लिए यह जरुरी जानकारी लेकर आयी है | आप को किसी भी तरह की कृषि से जुड़ी जानकर चाहिए तो हमें जरुर बताएं |

जानें किस महीने में कौन सी सब्जी लगाने से होताहै अधिक फायदा

जानें किस महीने में कौन सी सब्जी लगाने से होताहै अधिक फायदा 

जनवरी
राजमा, शिमला मिर्च, मूली, पालक, बैंगन, चप्‍पन कद्दू
फरवरी
राजमा, शिमला मिर्च, खीरा-ककड़ी, लोबिया, करेला, लौकी, तुरई, पेठा, खरबूजा, तरबूज, पालक, फूलगोभी, बैंगन, भिण्‍डी, अरबी, एस्‍पेरेगस, ग्‍वार
मार्च
ग्‍वार, खीरा-ककड़ी, लोबिया, करेला, लौकी, तुरई, पेठा, खरबूजा, तरबूज, पालक, भिण्‍डी, अरबी
अप्रैल
चौलाई, मूली
मई
फूलगोभी, बैंगन, प्‍याज, मूली, मिर्च
जून
फूलगोभी, खीरा-ककड़ी, लोबिया, करेला, लौकी, तुरई, पेठा, बीन, भिण्‍डी, टमाटर, प्‍याज, चौलाई, शरीफा
जुलाई
खीरा-ककड़ी-लोबिया, करेला, लौकी, तुरई, पेठा, भिण्‍डी, टमाटर, चौलाई, मूली
अगस्‍त
गाजर, शलगम, फूलगोभी, बीन, टमाटर, काली सरसों के बीज, पालक, धनिया, ब्रसल्‍स स्‍प्राउट, चौलाई
सितम्‍बर
गाजर, शलगम, फूलगोभी, आलू, टमाटर, काली सरसों के बीज, मूली, पालक, पत्‍ता गोभी, कोहीराबी, धनिया, सौंफ के बीज, सलाद, ब्रोकोली
अक्‍तूबर
गाजर, शलगम, फूलगोभी, आलू, टमाटर, काली सरसों के बीज, मूली, पालक, पत्‍ता गोभी, कोहीराबी, धनिया, सौंफ के बीज, राजमा, मटर, ब्रोकोली, सलाद, बैंगन, हरी प्‍याज, ब्रसल्‍स स्‍प्राउट, लहसुन
नवम्‍बर
चुकन्‍दर, शलगम, फूलगोभी, टमाटर, काली सरसों के बीज, मूली, पालक, पत्‍ता गोभी, शिमला मिर्च, लहसुन, प्‍याज, मटर, धनिया
दिसम्‍बर
टमाटर, काली सरसों के बीज, मूली, पालक, पत्‍ता गोभी, सलाद, बैंगन, प्‍याज

schoolpanting

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school panting

petrol pump scame

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extra charge for surgical goods

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Wednesday, December 27, 2017

ICICI Prudential officials for allegedly duping hundreds of unsuspecting consumers into buying insurance policies whose premiums they could barely afford.

Jaipur: The Rajasthan police’s special operations group (SOG) is investigating multiple ICICI bank and ICICI Prudential officials for allegedly duping hundreds of unsuspecting consumers into buying insurance policies whose premiums they could barely afford.
When Sohandas, a 75-year-old farmer from Udaipur, sold the only piece of land he owned, he hoped the money would help him and his 65-year-old wife with financial security during old age. After building a small house, he deposited the rest of his money (Rs 7,50,000) in a fixed deposit at ICICI bank’s Udaipur branch.
“Nine months later, I started receiving calls from Mumbai asking me to deposit another Rs 7,50,000, failing which I’d lose my original deposit. When I showed the bank documents to a lawyer, I was told it was an insurance policy, which required me to deposit the same amount every year”.
“I don’t know what to do now,” he said. “Both my wife and I are too old to find labour jobs. We have medical bills of Rs 5-7,000 every month. We don’t have 7.5 lakh rupees to deposit every year”.
Sohandas, however, is not alone. There are hundreds like him – a labourer who was relieved of the insurance money she received upon her husband’s death; a government employee whose gratuity melted away; a poor farmer whose agricultural loan was appropriated.
The victims include farmers, labourers and senior citizens from rural areas of southern Rajasthan, including beneficiaries of central government schemes like the Kisan Credit Card and MGNREGA, all of who were duped by officials from ICICI bank into buying insurance policies with huge recurring annual premiums, the police says.
In a preliminary probe, the special operations group (SOG) of the Rajasthan police established the existence of this  fraud following a complaint by a whistleblower, Nitin Balchandani, an ex-employee of ICICI Prudential.
Subsequently, in November, the SOG launched a full-fledged investigation, booking company officials for cheating, forging documents, criminal conspiracy and criminal breach of trust.
An FIR was registered in the same month under sections 420 (fraud), 467, 468, 471 (forgery), 406 (criminal breach of trust) and 120B (criminal conspiracy) of the Indian Penal Code. The FIR, a copy of which The Wire has accessed, specifically names Rohit Saini (Regional Manager, ICICI Prudential, Udaipur), Kamlesh Mehta (Financial Services Consultant, ICICI Prudential Udaipur), Deepak Agarwal (Sales officer, ICICI bank Udaipur) and Satish Kumar Dangi (ICICI employee).
According to the SOG investigation, the bank and its officials misled consumers and violated regulatory norms issued by the Insurance Regulatory and Development Authority of India (IRDAI).
“These banks and insurance firms have unrealistic monthly targets. In this case, whenever they gave out loans to farmers or other vulnerable applicants, they put a substantial part of the money in insurance policies with recurring premium. In some cases, they put the entire loan amount in such policies. The farmer has no idea. It’s a comprehensive fraud,” inspector general of police (SOG) Dinesh M.N. told The Wire.
Bholi Bai, a wage labourer under MGNREGA, wanted to put the insurance money she received at her husband’s death into a fixed deposit. The officials at ICICI bank’s Kelwa branch sold her an insurance policy instead.
Bholi, a MGNREGA labourer earning about Rs 3000 a month, thought her money was safe in a FD since she believed “bank mein kuch galat nahin hota (the bank could do no wrong)”.
I got insurance of Rs 1,00,000 at my husband’s death. I wanted an FD but the bank put my money into an insurance policy. I realised it months later when my mamaji (uncle) saw the bank documents. When I approached them, they told me I had to deposit Rs 50,000 every year only then I would get my money back,” she says.
The Wire sent detailed questionnaires to both companies asking for their comments on the pre-investigation and subsequent FIR. Both companies, however, refused to respond despite repeated emails and phone calls to their officials as well as Adfactors PR, the agency handling their public relations portfolio.
The modus operandi
ICICI and ICICI Prudential officials in the state allegedly used their large database of account holders in rural areas to target unsuspecting consumers, especially farmers, labourers and senior citizens.
Typically, the officials asked the consumers – who would either want to deposit money or seek loans – to put a part of their money/loan into a fixed deposit (FD). They would then make the applicants sign policy documents written in English, claiming they were for an FD. Since most of their customers couldn’t read or write English, they would have no idea about the product they were signing up for.
Manohar Das Vaishnav, who trusted the bank with his retirement money, was shocked when he learnt he had been sold an insurance plan which required him to pay a premium of Rs 1,00,000 every year.
“I got Rs 4,00,000 as gratuity from my employer on retirement. The money was deposited in the ICICI branch in Fatehnagar Udaipur. They got me to sign a form written in English saying it was for a fixed deposit. But they withdrew Rs 1,00,000 from my account and put it in an insurance plan,” says Vaishnav (63), a retired employee of Tilam Sangh, a state run oil company.
The SOG investigation found several irregularities by bank officials – faking age (lowered) and annual income (increased) of applicants, making calls to ICICI call centres posing as the consumer to establish consent, faking witnesses and not cooperating with the police.
“So far, our investigation has revealed fraud and serious violation of IRDAI guidelines. The bank and the insurance authorities also did not cooperate with the investigation and tried to mislead us. The scale of this fraud is massive,” Mahaveer Singh Ranawat, additional SP (SOG) who conducted the preliminary investigation, told The Wire.
The pre-probe established the connivance of officials from ICICI bank, and ICICI Prudential Insurance company.

“The complainant got a loan under his Kisan Credit Card from the bank. The bank manager and some officials issued him an insurance policy, with a recurring annual premium of Rs 50,000, out of the loan amount.  The victim was told it was a fixed deposit and made to sign policy documents in English, fraudulently,” the SOG’s investigation report, accessed by The Wire, reads.
“IRDAI norms require the consumer’s signature on the benefit illustration document, which was not done. The applicant’s educational qualification and annual income were falsely increased (to meet eligibility criteria). The applicant says his signature was forged on form 61 (required for premium over Rs 50,000).
Balchandani, the ex-employee who blew the whistle on the fraud, says most insurance companies resorted to similar ploys to meet their targets.
“The fraud was in connivance with ICICI bank and ICICI Prudential. While I was an employee, I informed the senior management about these unethical practices. [However], they started harassing me and pressurised me to leave the company,” says Balchandani.
“I left the company after serving my two-month notice period. Then I started my consulting firm where we raised issues of such poor farmers, widows, BPL members, students etc with the RBI, IRDAI, the Serious Fraud Investigation Office, finance ministry and the Prime Minister’s Office,” he adds.
After leaving ICICI, Balchnadani claims to have helped 400 people get their money back from “almost all insurance companies”.
“However, more than 250 clients were just from ICICI. I believe the level of this fraud is institutional. They have branches in rural areas and had access to database of illiterate people who trusted the bank, which the bank used for their own benefit and target completion,” he alleges.
ICICI’s response
While ICICI Prudential officials did not answer any queries raised by The Wire over email, some officials met this correspondent privately on December 13.
During the meeting, Rajiv Adhikari, the vice president of corporate communication and investor relations, ICICI Prudential, claimed that the company had returned the money to some of the complainants whose names came up during the SOG’s pre-investigation. 
However, the police doesn’t accept these claims. SOG additional SP Mahaveer Singh Ranawat maintains that ICICI and ICICI Prudential officials did not cooperate at all with the investigation. He re-affirmed his stance when The Wirecontacted him to ask about the company’s version. 
“They might have given the money back to not just three but 30 victims. They did that out of fear of the police. But does that mean there was no fraud? Tomorrow if someone steals money from you and then returns it, would it not be theft?” Ranawat said.
Whistleblower targeted
ICICI Prudential officials also accused Balchandani, the ex-employee and whistleblower, of misappropriating money from some clients. Adhikari said the company had filed an FIR against Balchandani, who had to spend a month in judicial custody.
“Yes there was a case against him filed by the company but all I know is it’s in the trial stage now. Whatever the outcome of that, it does not absolve the company and its officials from the crime they committed,” Ranawat told The Wire.
On April 1, 2016, Saini, associate regional manager, filed an FIR against Balchandani at Udaipur’s Bhupalpura police station for harming the company, duping consumers, stealing sensitive data and causing financial loss. However, on April 30, 2016, the police presented a closure report in the court based on the fact that it had not found any wrongdoing on Balchandani’s part.
“The complainant alleged that the respondent (Balchandani) stole sensitive company data but couldn’t present any evidence proving it…the respondent helped those consumers get their money back who approached him after the company failed to help them…(Balchandani) did not profit from the company, nor did the company suffer from any illegal harm…had he duped any consumer, they would have surely complained against him…the investigation clearly establishes that consumers reached out to him because the company did not inform them of the risks and benefits of the policies, nor of the rules regarding getting their money back,” the final report, submitted by investigating officer Himmat Singh in the court, read.
Balchandani claims the case was later re-opened without the standard operating procedure in May or June last year and he was taken into custody on September 26, 2016, just a day before the high court was to begin hearing the PIL filed by him, and consequently, he could not appear in the court.
“After the closure report, the ICICI group again approached me in May 2016 and a meeting was held in Hotel Radisson on June 8 and subsequently on July 5 wherein again I was requested (not threatened this time) to not escalate the cases to regulatory authorities and was promised an appreciation letter for my services and appropriate help by the ICICI group in getting certain approvals from IRDA in setting up of a consumer advocacy group for helping clients affected by misselling of insurance products. However they later refused any appreciation letter or anything else in writing,” Balchandani told The Wire.
“By this time we had realised that our complaints are falling on deaf ears and only the cases highlighted by us were being resolved and the company took no action against their employees to stop such corrupt practices. So I filed a public interest litigation in Rajasthan high court on September 21, 2016, which was listed to be heard for admission on September 27. But I was taken into custody just one day before my scheduled court appearance,” he claims.

GOLD HAL MARK

Monday, December 25, 2017

उद्यानिकी एवं वानकी के लिए जरुरी औजार एवं कृषि यंत्र

उद्यानिकी एवं वानकी के लिए जरुरी औजार एवं कृषि यंत्र

कृषि कार्य अन्तर्गत फलदार वृक्षों एवं फूलवाले पौधों की खेती का विशेष महत्व है | बाग – बगीचों की सुन्दरता एवं स्वस्थ बनाये रखने के लिए इन वृक्षों / पौधों की समय – समय पर कटाई – छंटाई आवश्यक है | इस हेतु उपयोग में आने वाले प्रमुख यंत्रों एवं उपकरणों का विवरण निम्नांकित हैं :-
  1. ट्री पुनर (Tree Pruner) :-

यह एक मानव हस्त चालित उपकरण है जिसके द्वारा उधान के वृक्षों की टहनियों को जो मानव हाथ के पहुंच के उपर है, की कटाई – छंटाई की जाती है | इसमें स्प्रिंग लगा कटिंग ब्लेड एवं सौकट होता है जो एक रस्सी के सहारे जुड़ा होता है | ब्लेड हाई कार्बन स्टील का बना होता है, जिसकी कठोरता 425 – 450 एच.बी. की होती है एवं इसके कटींग एज काफी तीक्ष्ण होते हैं | कटींग औपरेशन हेतु शाखा अथवा टहनी को यंत्र के हुक में लाया जाता है एवं रस्सी को खींचकर ब्लेड को कार्यरत किया जाता है | शियरिंग एक्शन के फलस्वरूप ब्लेड को कार्यरत किया जाता है | शियरिंग एक्शन के फलस्वरूप ब्लेड द्वारा टहनी की कटाई एक झटके में हो जाती है | रस्सी को ढीला करने पर स्प्रिंग एक्शन के फलस्वरूप ब्लेड पुन: अपनी पूर्व की स्थिति में आ जाती है एक टिपीकल साइज के ट्री प्रुनर की लम्बाई 36 से.मी. होती है, जबकि उसकी कटाई क्षमता 2 से.मी. व्यास तक के शाखा / टहनी को काटने की होती है |
कार्य क्षमता :- 2 से.मी. व्यास के टहनी को काटने की |
उपयोग :- उद्धान के वृक्षों की अनचाही टहनियों, जिससे हवा एवं प्रकाश पहुँचने में बाधा उत्पन्न होती है,  अथवा उन्हें एक इच्छित शेप देने हेतु उन टहनियों को काटने में इस यंत्र का उपयोग होता है |
  1. चेन सॉ (chain saw) :-

यह एक हल्का, पोर्टेबुल यंत्र है, जिससे एक आदमी अकेले चला सकता है इसे 1.6 किलोवाट विधुत मोटर अथवा पेट्रोल इंजन से चलाया जा सकता है | इस कारण इसे पावर शॉ भी कहते है | इसके द्वारा पेंड की सुखी, मृत अथवा रोग ग्रस्त टहनियों को काटा जा सकता है अथवा पंडों को काटकर गिराया जा सकता है | यंत्र में लगा कटर एक एंडलेस चेन के साथ जुड़ा होता है, जिसके द्वारा इंजन का पावर इसमें पहुंचाया जाता है | डेप्थ आफ क्त को एक डेप्थ गेज के द्वारा नियंत्रित किया जाता है | मशीन का वजन 3.9 किलोग्राम एवं अधिकतम कटींग लेंथ 40 से.मी. होता है |
कार्य क्षमता :- 40 से.मी. कटींग लेंथ की |
उपयोग :- पेड़ की सुखी, मृत अथवा रोग ग्रस्त टहनियों को काटने में |
  1. हेज शियर (Hedge sheer) :-

यह एक हस्त चालित कृषि औजार है, जिसका उपयोग बाग – बगीचे में उगी झाड़ियों बढ़ी हुई घासों की कटाई एवं छंटाई हेतु किया जाता है, ताकि उसे सुन्दर और आकर्षक बनाया जा सके | इसकी बनावट एक बड़ी कैंची की तरह होती है, जिससे दो समान आकार के ब्लेड्स हैन्डल सहित एक साथ जुड़े होते है | कटिंग औपरेशन हेतु दोनों हैन्डल को हाथों से पकड़कर दोनों ब्लेड्स के बीच झाड़ियों एवं घासों (Hedges & shrubs) को रखकर चलते हैं, जिससे शियरिंग एक्शन के फलस्वरूप उनकी कटाई हो जाती है |ब्लेड्स हाई कार्बन स्टील, टूल स्टील अथवा एल्वाय स्टील के ब्लेड लेन्थ 150 – 300 एम.एम., ब्लेड थिकनेस 8 एम.एम. एवं ब्लेड एंगल 30 डिग्री से 90 डिग्री तक होता है |
उपयोग :- बाग – बगीचे में उगी झाड़ियों, बढ़ी हुई घासों की कटाई एवं छटाई कर उसे सुन्दर और आकर्षक बनाने हेतु |
  1. गड्ढा खुदाई यंत्र (post hole digger) :-

यह एक औगर (auger) युकत यंत्र है, जिसका प्रयोग पौधा लगाने हेतु गड्ढा खोदने में किया जाता है | यह ट्रैक्टर के पी.टी.ओ. द्वारा संचालित एवं उसके थ्री प्वाईंट लिंकेज द्वारा जुड़ा एक अटैचमेन्ट है | औगर एसेम्बली को बदलकर गड्ढे के ब्यास एवं उसकी गहराई को परिवर्तित किया जा सकता है | मशीन का वजन 150 – 240 कि.ग्रा. होता है एवं इसे 35 एच.पी. ट्रैक्टर से चलाया जा सकता है | मशीन के गड्ढा बनाने की क्षमता 90 गडढे प्रति घंटा होती है |
कार्य क्षमता :- 90 गड्ढे प्रति घंटा |
उपयोग :- पौधा लगाने हेतु गड्ढा खोदने में |

नीलगाय को खेत से दूर रखने के कुछ परम्परगत तरीके

नीलगाय को खेत से दूर रखने के कुछ परम्परगत तरीके

नीलगाय झुंड में रहती हैं तो जितना ये फसलों को खाकर नुकसान करती हैं उससे ज्यादा इनके पैरों से नुकसान पहुंचता है। सरसों और आलू के पौधे एक बार टूट गए तो निकलना मुश्किल हो जाता है। कुछ परंपरागत तरीके किसानों को जरुर आज़माने चाहिए। हालांकि लंबे समय के लिए ये कारगर नहीं है क्योंकि ये (नीलगाय) बहुत चालाक जानवर हैं तो बाड़ लगवाना सबसे बेहतर रहता है।

नीलगाय रोकने के लिए इस तरह बनायें हर्बल घोल

  • नीलगाय को खेतों की ओर आने से रोकने के लिए 4 लीटर मट्ठे में आधा किलो छिला हुआ लहसुन पीसकर मिलाकर इसमें 500 ग्राम बालू डालें। इस घोल को पांच दिन बाद छिड़काव करें। इसकी गंध से करीब 20 दिन तक नीलगाय खेतों में नहीं आएगी। इसे 15 लीटर पानी के साथ भी प्रयोग किया जा सकता है।
  • बीस लीटर गोमूत्र, 5 किलोग्राम नीम की पत्ती, 2 किग्रा धतूरा, 2 किग्रा मदार की जड़, फल-फूल, 500 ग्राम तंबाकू की पत्ती, 250 ग्राम लहसुन, 150 लालमिर्च पाउडर को एक डिब्बे में भरकर वायुरोधी बनाकर धूप में 40 दिन के लिए रख दें। इसके बाद एकलीटर दवा 80 लीटर पानी में घोलकर फसल पर छिड़काव करने से महीना भर तक नीलगाय फसलों को नुकसान नहीं पहुंचाती है। इससे फसल की कीटों से भी रक्षा होती है
  • खेत के चारों ओर कंटीली तार, बांस की फंटियां या चमकीली बैंड से घेराबंदी करें।
  • खेत की मेड़ों के किनारे पेड़ जैसे करौंदा, जेट्रोफा, तुलसी, खस, जिरेनियम, मेंथा, एलेमन ग्रास, सिट्रोनेला, पामारोजा का रोपण भी नीलगाय से सुरक्षा देंगे।
  • खेत में आदमी के आकार का पुतला बनाकर खड़ा करने से रात में नीलगाय देखकर डर जाती हैं।
  • नीलगाय के गोबर का घोल बनाकर मेड़ से एक मीटर अन्दर फसलों पर छिड़काव करने से अस्थाई रूप से फसलों की सुरक्षा की जा सकती है।
  • एक लीटर पानी में एक ढक्कन फिनाइल के घोल के छिड़काव से फसलों को बचाया जा सकता है।
  • गधों की लीद, पोल्ट्री का कचरा, गोमूत्र, सड़ी सब्जियों की पत्तियों का घोल बनाकर फसलों पर छिड़काव करने से नीलगाय खेतों के पास नहीं फटकती।
  • देशी जीवनाशी मिश्रण बनाकर फसलों पर छिड़काव करने से नीलगाय दूर भागती हैं।

Sunday, December 24, 2017

wake up bharat

बीमा कम्पनी फसल बीमा का निर्धारण कैसे करती है तथा किसान को प्रति हैक्टेयर रबी और खरीफ में कितना पैसा मिलेगा |

बीमा कम्पनी फसल बीमा का निर्धारण कैसे करती है तथा किसान को प्रति हैक्टेयर रबी और खरीफ में कितना पैसा मिलेगा |

दावों का निर्धारण (व्यापक आपदाएँ)

किसान भाई आप लोग यह जानना चाहते होंगे की बीमा कम्पनी फसल बीमा की राशि कैसे निर्धारित करती है | आज आप को एक उदाहरण से यह बताना चाहता हूँ की बीमा कंपनी बीमा का निर्धारण कैसे करती है | इस मध्यम से आप लोग अपने फसल की बीमा करवा सकते है |
पहले यह जानते है की बीमा राशि मिलता किसको है |
वास्तविक उपज विनिद्रिष्ट थ्रेशहोल्ड उपज के सापेक्ष कम पड़ती है तो परिभाषित क्षेत्र में उस फसल को उगाने वाले सभी बीमाकृत किसान उपज में उसी मात्रा की कमी से पीड़ित माने जाएँगे |
अब जानते हैं की किस प्रकार कम्पनी बीमा राशि की निर्धारण करती है |
( थ्रेशहोल्ड उपज – वास्तविक उपज ) ͟ ͟͟× बीमाकृत राशि

थ्रेशहोल्ड उपज                     

जंहा किसी अधिसूचित बीमा इकाई में फसल की थ्रेशहोल्ड उपज पिछले 7 वर्षों की औसत उपज (राज्य सरकार/केन्द्र शासित राज्य सरकार द्वारा यथा अधिसूचित अधिकतम 2 वर्षों को छोड़कर) एवं उस फसल के क्षतिपूर्ति स्तर से गुणा करने पर प्राप्त होगी |

उदाहरण :-

रबी 2014 – 15 फसल मौसम के लिए टीवाई से संबंधी एक्स संगणन बीमा इकाई क्षेत्र हेतु पिछले 7 वर्षों के लिए गेंहू की परिकल्पित उपज नीचे सरणी में दी गई है :-
वर्ष2008 – 092009 – 102010 – 112011 – 122012 – 132013 – 142014 – 15
उपज (कि.ग्रा./हे. )45003750200004250180043001750

वर्ष 2010 – 11, 2012 -13 और 2014 – 15 को प्राकृतिक आपदा वर्ष घोषित किया गया था |
सात वर्षों की कुल उपज प्रति हैक्टेयर 22,350 कि.ग्रा. है और दो सर्वाधिक खराब आपदा वर्षों की प्रति हैक्टेयर 35 50 कि.ग्रा. अर्थात (1800+1750) कि.ग्रा. है | इस प्रकार , की गई व्यवस्था के अनुसार अधिकतम दो आपदा वर्षों को छोड़कर पिछले 7 वर्षों की औसत उपज 22350 – 3550 = 18,800 / 5 अर्थात 3760 कि.ग्रा. प्रति हैक्टेयर है | इस प्रकार, क्षतिपूर्ति स्तर 90 प्रतिशत, 80 प्रतिशत और 70 प्रतिशत के लिए थ्रेशहोल्ड उपज क्रमश: 3384, 3008 और 2632 कि.ग्रा. प्रति हैक्टेयर है |

नुकसान मूल्यांकन की समय सीमा और विवरण की प्रस्तुति

  1. सूचना प्राप्त होने की तारीख से 48 घंटों के भीतर नुकसान मूल्यांकन कर्ता की नियुकित |
  2. नुकसान मूल्यांकन कार्य को अगले 10 दिनों के भीतर पूरा किया जाएगा |
  3. किसान के दावों का निपटान / भुगतान का कार्य नुकसान मूल्यांकन विवरण की तारीख से अगले 15 दिनों के भीतर (बशर्ते प्रीमियम की प्राप्ति हो चुकी हो) के भीतर किया जाए |
  4. अधिसूचित बीमा इकाई में कुल बीमाकृत क्षेत्र का 25 प्रतिशत से अधिक होने पर अधिसूचित फसल के तहत प्रभावित क्षेत्र होने की स्थिति में सभी पात्र किसान (जिन्होंने अधिसूचित फसल के लिए बीमा लिया है और जो क्षतिग्रस्त हुआ है तथा विनिर्धारित समय के भीतर कृषिक्षेत्र में कोई आपदा के बारे में सूचना दी है) अधिसूचित बीमा इकाई में फसल कटाई उपरांत होने वाले नुकसान से ग्रस्त माने जाएँगे और उन्हें वित्तीय सहायता का पात्र मन जाएगा | नुकसान की प्रतिशतता बीमा कम्पनी द्वारा प्रभावित क्षेत्र के नमूना सर्वेक्षण (यथा निर्धारित संयुक्त समिति द्वारा) की अपेक्षित प्रतिशतता द्वारा तय किया जाएगा |
  5. यदि क्षेत्र दृष्टिकोण आधारित (फसल कटाई प्रयोग पर आधारित) दावा फसल कटाई के बाद होने वाले नुकसान के दावों से अधिक है तो प्रभावित किसानों को विभिन्न दावों का अंतर देय होगा | यदि फसल कटाई के बाद का दावा अधिक है, तो प्रभावित किसानों से कोई भी वसूली आदि प्रक्रिया नहीं अपनाई जाएगी |

व्याख्या

  1. फसल के लिए बीमाकृत राशि = 50,000 रु.
  2. बीमा इकाई का प्रभावित क्षेत्र = 80 प्रतिशत (नमूना सर्वेक्षण का पात्र)
  3. बीमाकृत जोखिम के संचालन के कारण प्रभावित क्षेत्र / फील्डों में मूल्यांकन कृत नुकसान = 50 प्रतिशत
  4. फसल कटाई के बाद होने वाले नुकसान के तहत देय दावे = 50,000 रु. × 50 प्रतिशत = 25,000 रु.
  5. मौसम के अंत तक विवरण कृत उपज में कमी = 60 प्रतिशत
  6. बीमा इकाई स्तर पर क्षेत्र दृष्टिकोण पपर आधरित अनुमानित दावा = 50,000 रु. × 60 प्रतिशत = 30,000 रु.
  7. मौसम के अंत में भुगतान योग्य शेष राशि = 30,000 रु. – 25,000 = 5,000 रु.

  नुकसान / दावों की विवरण का समय और पद्धति

  1. किसान सीधे बीमा कंपनी, संबंधित बैंक, स्थानीय कृषि विभाग, सरकारी / जिला पदाधिकारी अथवा नि:शुल्क दूरभाष संख्या वाले फोन के अनुसार बीमाकृत किसान द्वारा किसी को भी तत्काल रूप से सूचित किया जाए (48 घंटो के भीतर) |
  2. दी गई सूचना में सर्वेक्षणवार बीमाकृत फसल और प्रभावित रकबा का विवरण अवश्य होना चाहिए |
  3. किसान / बैंक द्वारा अगले 48 घंटों के भीतर प्रीमियम भुगतान सत्यापन की विवरण की जाए |

दावों का मूल्यांकन करने के लिए अपेक्षित दस्तावेज साक्ष्य

सभी दस्तावेज साक्ष्यों सहित विविधवत भरे गये दावों के भुगतान के प्रयोजनार्थ प्रस्तुत किया जाएगा | तथापि, यदि सभी कालमों से संबंधित सूचना सुलभ रूप से उपलब्ध नहीं है, तो अर्ध रूप में भरा गया प्रपत्र बीमा कम्पनी को भेज दिया जाएगा और बाद में नुकसान होने के 7 दिनों के भीतर पूर्णत: भरा हुआ प्रपत्र भेजा जा सकता है |
  • मोबाईल अनुप्रयोग यदि कोई है, के द्वारा तस्वीरें लेकर फसल नुकसान का साक्ष्य प्रस्तुत करना |
  • नुकसान और नुकसान की गहनता संबंधी घटना, यदि कोई है, को संपुष्ट करने के प्रयोजनार्थ स्थानीय अख़बार की खबर की प्रति और कोई अन्य उपलब्ध साक्ष्य प्रस्तुत किया जाएगा |
खरीब फसल के लिए प्रधानमंत्री फसल बीमा करवाने  की आखरी तारीख 31 जुलाई तक ही हैI
स्त्रोत: प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना, भारत सरकार

प्रधानमंत्री फसल बीमा को सरल भाषा में समझे, फसल का बीमा कैसे होगा एवं बीमा राशी कैसे मिलेगी

प्रधानमंत्री फसल बीमा को सरल भाषा में समझे, फसल का बीमा कैसे होगा एवं बीमा राशी कैसे मिलेगी

किसान भाई आप अक्सर यह पूछा करते है की कृषि बीमा कैसे करायें, कंहा करायें| इसके बाद यह भी जानना चाहते है की कोन करता है और कितना प्रीमियम है | सबसे बड़ी बात यह आती है की बीमा कराने पर कितनी राशि मिलेगी तथा कहाँ मिलेगी | किससे सम्पर्क करना पड़ेगा | इन सभी सवालों का जवाब किसान समाधान ने आसान भाषा में लेकर आया | यह सारी जानकारी 2018 के लिए है इसे पढ़कर आप 2018 में अपनी कृषि बीमा करा सकते है |

प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना

प्रधान मंत्री फसल बीमा योजना, पूरी तरह से किसानों के हितों को ध्यान में रखकर बनायी गयी है | इसमें प्राकृतिक आपदाओं के कारण खराब हुई फसल के खिलाफ किसनों द्वारा भुगतान की जानेवाली बीमा की किस्तों को बहुत कम रखा गया है, जिनका प्रत्येक स्तर का किसान आसानी से भुगतान कर सके | यह योजना न केवल खरीफ और रबी की फसलों को बल्कि वाणिज्यिक और बागवानी फसलों के लिए भी सुरक्षा प्रदान करती है, वार्षिक वाणिज्यिक और बागवानी फसलों के लिए किसानों को 5% प्रीमियम (किस्त) का भुगतान करना होगा | इस योजना के अन्तर्गत, किसानों को बीमा कम्पनियों द्वारा निश्चित, खरीफ की फसल के लिये 2% प्रीमियम और रबी की फसल के लिये 1.5% प्रीमियम का भुगतान करेगा |

योजना के लाभ हेतु अनिवार्यतायें 

  1. योजना का लाभ अधिसूचित क्षेत्र में अधिसूचित फसलों के लिये ही मिलेगा |
  2. कृषक द्वारा परिस्थितियों की सूचना प्रशासन को दी जाएँ एवं पुष्टि की अधिसूचित जिला प्रशासन द्वारा जारी की जाये |
  3. अधिसूचना शासन से जारी होने के पूर्व संबंधित कृषक का प्रीमियम बीमा कंपनी में जमा हो |
  4. योजना ऋणी किसानों के लिए अनिवार्य है अऋणी किसानों को भू – अधिकार पुस्तिका, बुवाई प्रमाण पत्र, प्रस्ताव फार्म, बैंक अकाउंट की जानकारी एवं पहचान पत्र के साथ आवेदन करना होगा |

अंतिम तिथियां :

खरीफ मौसम के लिये अंतिम तिथि 1 अप्रैल से 16 अगस्त तथा रबी मौसम के लिये 15 सितम्बर से 15 जनवरी है |

योजना की विशेषतायें 

बीमा राशि जिले के स्वीकृत ऋणमान के बराबर और प्रीमियम बहुत अल्प प्रतिशत |
भोपाल जिले में स्वीकृत ऋणमान के अनुसार बीमा के प्रीमियम की दरें रूपये प्रति हेक्टेयर |

वर्ष 2017 – 18 के लिये ऋणमान

क्र.खरीफऋणमानप्रीमियम 2%अधिसूचना का स्तर
1.सोयाबीन33000660पटवारी
2.मूंग / उड़द23000460जिला स्तर पर

क्र.रबीऋणमानप्रीमियम 1.5%अधिसूचना का स्तर
1.गेंहू सिंचाई40000600पटवारी हल्का
2.चना30000450पटवारी हल्का
3.मसूर26000390जिला स्तर पर

योजना का लाभ 4 स्थितियों में :-

  1. बोनी से 15 दिनों तक 75 प्रतिशत पटवारी हल्के में अंकुरण न होने अथवा बोनी की स्थिति न बनने पर कुल बीमित राशि का 25 प्रतिशत उसके बाद पॉलिसी समाप्त |
  2. अंकुरण से कटाई तक पटवारी हल्के में उत्पादन 50 प्रतिशत से कम होने की आशंका होने पर पहले 25 प्रतिशत शेष अंतिम परिणामों के बाद |
  3. कटाई के बाद 14 दिनों तक खेत में कटी हुई फसल के चक्रवाती वर्षा एवं बेमौसम वर्षा के कारण खराब होने पर, 25 प्रतिशत से अधिक क्षेत्र में हानि होने पर पुरे अधिसूचित क्षेत्र में और 25 प्रतिशत से कम होने पर कृषक स्तर पर |
  4. ओलावृष्टि , भूस्खलन एवं जल प्लावन के कारण होने वाले क्षति के लिये कृषक स्तर पर भी कटाई प्रयोग के आधार पा बीमा का लाभ |

प्रधानमंत्री फसल बीमा योजनातर्गत बीमा दवा प्रक्रिया की संक्षिप्त जानकारी

जोखिमजोखिम आवरणफसल अवस्थाहानि पात्रता मानदंडएप्रोचहानि मुल्यांकन की प्रक्रिया
बाघित / निष्फल / रोपणकम वर्षा या वित्तीय मौसम परिस्थितियांबुवाई / रोपण न हो पाना / अंकुरण जोखिममुख्य फसलों हेतु अधिसूचित बीमा इकाई के 75 प्रतिशत से अधिक क्षेत्र में बुवाई / रोपण न होने परएरिया एप्रोच (अधिसूचित बीमित इकाई स्तर परजिला स्तरीय मूल्यांकन समिति द्वारा अधिसुचिना जारी की जनि चाहिए |
मध्यावधि मौसम प्रतिकूलताबाढ़, दीर्घकालीन शुल्क मौसम और कठोर सूखे आदिखाड़ी फसल / कटने से 15 दिन पूर्व की अवस्थाअनुमानित उपज, थ्रेशहोल्ड ऊपज से 50 प्रतिशत कम आने परएरिया एप्रोच (अधिसूचित बीमित इकाई स्तर पर)जिला स्तरीय मूल्यांकन समिति द्वारा अधिसुचिना जारी की जाकर संयुक्त निरिक्षण हेतु बीमा कंपनी को समय जानकारी उपलब्ध कराई जनि है |
स्थानीय आपदाओलावृष्टि , भूस्खलन एवं जल भरावखड़ी फसलजोखिम होने के 72 घण्टों के भीतर कृषक/जिला प्रशासन/ कृषि विभाग /राजस्व विभाग / वित्तीय शाखाओं द्वारा बीमा कंपनी के हेल्पलाइन न. या ईमेल परव्यक्तिगत खेत के आधार परजोखिम की सुचना देने की तिथि से 12 दिवस के भीतर व्यक्तिगत खेत का निरिक्षण कृषि अधिकारी बीमा कंपनी कृषक द्वारा संयुक्त रूप से किया जायेगा |
फसल कटाई पश्चात होने वाली हानिफसल काटने के 14 दिन बाद तक सूखने हेतु फैलायी गयी फसल पर चक्रवात या बेमौसम वर्षा के कारण हानिफसल कटाई पशचातजोखिम होने के 72 घण्टों के भीतर कृषक/जिला प्रशासन/ कृषि विभाग /राजस्व विभाग / वित्तीय शाखाओं द्वारा बीमा कंपनी के हेल्पलाइन न. या ईमेल पर सुचना देने परव्यक्तिगत खेत के आधार परजोखिम की सुचना देने की तिथि से 12 दिवस के भीतर व्यक्तिगत खेत का निरिक्षण कृषि अधिकारी बीमा कंपनी कृषक द्वारा संयुक्त रूप से किया जायेगा |