नरेंद्र पाल एक सरकारी स्कूल में टीचर हैं. चंडीगढ़ के पास जीरकपुर में रहते हैं. एक रात 12 बजने के कुछ पहले उनके फ़ोन पर एक SMS आया. इसमें कुछ ऐसा था, जिसे पढ़कर उनके पसीने छूट गए. किसी ने सूरत (गुजरात) के एक ATM से उनके अकाउंट से 10 हज़ार रुपए निकाल लिए थे. इससे पहले कि वो कुछ समझ पाते, उन्हें दो और मैसेज आ गए. एक में 10 हज़ार कटने की बात थी और दूसरे में 20 हज़ार. चूंकि पैसे निकालने वाले ने पहला डेबिट 12 बजने से कुछ मिनट पहले किया था, इसलिए 12 बजने के तुरंत बाद उसने फिर से पैसे निकाल लिए.
ये सिर्फ़ नरेंद्र पाल की कहानी नहीं है. ज़्यादा से ज़्यादा लोग अब ऑनलाइन बैंकिंग सर्विसेज़ का इस्तेमाल कर रहे हैं. इससे बैंकिंग फ्रॉड भी बढ़ रहे हैं. नोटबंदी के बाद से ऑनलाइन ट्रांज़ैक्शन में और भी तेज़ी आई है. पाल के साथ जो कुछ भी हुआ, उसके बाद उन्होंने तुरंत अपने बैंक की हेल्पलाइन नंबर पर कॉल किया. उन्होंने अपने बैंक की शाखा और RBI को लिखा. बताया कि उन्होंने किसी से भी अपने बैंक अकाउंट और ATM कार्ड की डीटेल शेयर नहीं की थी, ऐसे में उनके पैसे किसने और कैसे निकाल लिए?
पाल ने एक शिकायत क्राइम ब्रांच की साइबर सेल में भी दी. अधिकारी उन्हें उस पेट्रोल पंप पर भी ले गए, जहां से उन्होंने आखिरी बार अपने ATM से पैसे निकाले थे. हालांकि, इससे भी कुछ पता नहीं लगा. पाल बताते हैं कि बैंक स्टाफ़ साथ देने वालों में से था, फिर भी अपने पैसे वापस पाने में उन्हें दो महीने से ज़्यादा लग गए और बैंक के न जाने कितने चक्कर काटने पड़े.
लेकिन, अब नरेंद्र पाल जैसे लोगों को चिंता करने की ज़रूरत नहीं है. RBI ने बैंकों और कस्टमर्स के लिए ऐसी गाइडलाइन्स जारी की हैं, जिनसे ऑनलाइन फ्रॉड झेलने वालों को बहुत राहत मिलेगी. इससे फ़ायदा कस्टमर को मिलेगा. पहले इस विषय में कोई क्लियर गाइडलाइन्स नहीं थीं या रिफ़ंड के लिए कोई निर्धारित समय-सीमा तय नहीं थी. अब जब ऑनलाइन ट्रान्ज़ैक्शन बहुत होने लगे हैं, ऐसे में बैंक वालों का ऐसा करना बहुत ज़रूरी हो गया है, ताकि उन पर लोगों का विश्वास बना रहे. इसके लिए बैंक अपने फ्रॉड मॉनीटरिंग सिस्टम को और दुरुस्त करेंगे.
बैंक नुकसान की भरपाई करेगा अगर…
#1. अगर लापरवाही बैंक की तरफ़ से हुई है, तो कस्टमर ने चाहे इस बारे में रिपोर्ट की हो या न की हो, बैंक पूरे पैसे वापस करेगा. डिजिटल ट्रान्ज़ैक्शन कई प्लेटफॉर्म से होकर गुज़रता है. जैसे अदाकर्ता का बैंक, प्राप्तकर्ता का बैंक, पेमेंट गेटवे वगैरह. इन ट्रान्ज़ैक्शन को एन्क्रिप्ट करके सुरक्षित रखना ज़रूरी है. एन्क्रिप्ट करने से डाटा ऐसे फॉर्म में बदल जाता है, जो आसानी से अनधिकृत लोगों की समझ में नहीं आता. इस प्रॉसेस में अगर कोई चूक होती है, तो उसकी ज़िम्मेदारी फिर बैंक की ही होगी. RBI की गाइडलाइन्स के मुताबिक बैंक को कस्टमर को रिफंड करना होगा.
#2. अगर गलती न बैंक की है और न कस्टमर की, बल्कि किसी और तीसरी पार्टी की वजह से पैसे कटे हैं, तो ऐसे केस में कस्टमर को ट्रान्ज़ैक्शन के बाद तीन दिन के अंदर बैंक को इसकी जानकारी दे देनी चाहिए. इससे बैंक को कस्टमर के सारे नुकसान की भरपाई करनी पड़ेगी.
#3. अगर कस्टमर की अपनी लापरवाही के कारण उसका ATM पिन, कार्ड नंबर या कोई और डीटेल लीक हुई, तो उसके लिए वो खुद ज़िम्मेदार हैं और सारा नुकसान कस्टमर को खुद उठाना पड़ेगा. इसलिए ज़रूरी है कि कार्ड के खोते ही सबसे पहले उसे ब्लॉक कराया जाए.
#4. अगर कस्टमर बैंक को ट्रान्ज़ैक्शन के बारे में 4 से 7 दिन के अंदर बताएंगे, तो जिसके सेविंग्स बैंक अकाउंट के क्रेडिट कार्ड की लिमिट 5 लाख रुपए है, उसे बैंक को 10 हज़ार या जितने पैसे निकले हैं, इन दोनों में से जो अमाउंट कम होगा, उतना देना पड़ेगा. ऐसा ही करंट बैंक अकाउंट के क्रेडिट कार्ड वालों के साथ भी होगा, जिनकी सालाना एवरेज लिमिट 25 लाख रुपए है. उन्हें भी ज़्यादा से ज़्यादा 10 हज़ार देने होंगे.
ये अमाउंट जो कस्टमर को देना पड़ता है, उसे लाएबिलिटी (liability) कहते हैं. इतना अमाउंट तो कस्टमर को देना ही होगा. उदाहरण के तौर पर- अगर अकाउंट से 5 हज़ार रुपए निकले हैं, तो 5 हज़ार देने होंगे और अगर 5 लाख निकले हैं, तो 10 हज़ार तो कम से कम देने ही पड़ेंगे. बाकी के 4 लाख 90 हज़ार बैंक कस्टमर को देगा.
अगर क्रेडिट कार्ड की लिमिट 5 लाख से ज़्यादा है, तो कस्टमर की लाएबिलिटी लिमिट 25 हज़ार रुपए होगी. मतलब जिनके क्रेडिट कार्ड की लिमिट 5 लाख रुपए से कम है, वो बैंक को ज़्यादा से ज़्यादा 10 हजार रुपए देंगे और जिनके क्रेडिट कार्ड की लिमिट 5 लाख से ज़्यादा है, उन्हें ज़्यादा से ज़्यादा 25 हज़ार रुपए देने होंगे.
#5. RBI की नई गाइडलाइन्स के मुताबिक कस्टमर के शिकायत करने के बाद दस दिन के अंदर-अंदर बैंक को कस्टमर के अकाउंट में उसके पैसे डालने होंगे.
#6. अगर 7 दिन बाद कस्टमर शिकायत दर्ज कराता है, तो उस केस में बैंक का बोर्ड फ़ैसला लेगा कि क्या एक्शन लेना है. बैंक हर छोटी से छोटी डिटेल चेक करेगा. ट्रान्ज़ैक्शन की पूरी डिटेल, हर रजिस्टर्ड फ़ोन नंबर की डिटेल, हर SMS और हर ईमेल एड्रेस की डिटेल. 90 दिन के अंदर-अंदर बोर्ड को फैसला लेना है. इतने दिन बाद भी अगर वो किसी नतीजे पर नहीं पहुंचते हैं, तो बैंक को कस्टमर से बिना कोई लाएबिलिटी लिए उसके पूरे-पूरे पैसे वापस करने होंगे.
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